दिल्ली : भारत में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा ने सोमवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी सिलिकन वैली यात्रा को लेकर काफी गहमागहमी है। इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि यात्रा से ऐसी नई प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी पाने का मौका मिलेगा जो भारत में स्मार्ट शहरों तथा अन्य ढांचागत सुविधाओं के विकास में मददगार होगी।
 
 
उन्होंने यहां कहा, ‘प्रधानमंत्री की अमेरिका में सॉन फ्रांसिस्को व सिलिकन वैली की यात्रा को लेकर चर्चा जोरों पर है। यह गहमागहमी केवल वहां के भारतीय अमेरिकी समुदाय में ही नहीं है, जिसने कि बीते दो दशकों में उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आमूल चूल बदलाव लाने में मदद की और हमारे देशों की नवोन्वेष तथा उद्यमिता की संस्कृति को और करीब लाया है।’ रिचर्ड वर्मा यहां 11वें भारत अमेरिका आर्थिक शिखर सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
 
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी 25 सितंबर को सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। इस यात्रा के दौरान वे 27 सितंबर को कैलिफोर्निया, सिलिकन वैली भी जाएंगे।
 
वर्मा ने कहा कि मोदी की यात्रा से यह मौका मिलेगा कि नई प्रौद्योगिकी किस तरह से भारत के लिए सुरक्षित व स्वच्छ स्मार्ट शहर बसाने, समान शिक्षा का अवसर देने, लाखों लोगों को बिजली उपलब्ध कराने में मददगार साबित हो सकती है।
 
अमेरिकी राजदूत ने कहा कि अमेरिकी कंपनियां इन मुद्दों के नये समाधान खोजने में भारत के साथ गठजोड़ को उत्सुक हैं। सम्मेलन के अवसर पर उन्होंने कहा, ‘हमें उनकी यात्रा का इंतजार है, सब कुछ बढिया चल रहा है और हम सभी इसको लेकर उत्साहित हैं।’ वर्मा ने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी व राष्ट्रपति (बराक) ओबामा के नेतृत्व में, हमारी सरकारें भागीदारी बढाने तथा नयी पहलों के लिए काम कर रही हैं ताकि आने वाले वर्षों में 500 अरब डॉलर के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। हमने बीते साल में उल्लेखनीय प्रगति की है व भविष्य में और अधिक प्रगति की उम्मीद है।’ उन्होंने कहा कि भारत, अमेरिका में निवेश का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। एक सर्वेक्षण के अनुसार अमेरिका में 91,000 रोजगार सृजित हुए हैं और 15 अरब डॉलर का निवेश किया गया है।
 
दूसरी तरफ भारत में अमेरिका से निवेश 2004 के 7.7 अरब डॉलर से बढ़कर आज 28 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारत में 500 से अधिक अमेरिकी कंपनियां काम कर रही हैं। जबकि अमेरिका में काम करने वाली भारतीय कंपनियों के संख्या 2005 में 85 से बढ़कर अब 200 तक पहुंच चुकीं हैं।