भोपाल। गुवाहाटी के अनुवादक दिनकर कुमार को जुलाई, 2012 में अंतरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान मिला है। कवि, लेखक व अनुवादक दिनकर ने नवदुनिया से खास बातचीत की। असम या पूर्वोत्तर में हिंदी की स्थिति खराब नहीं है। हिंदी का बिलकुल विरोध नहीं है, लेकिन दुखद यह है कि हिंदी पर कुछ काम नहीं हो रहा। सबका ध्यान सिर्फ मंत्रालय से मिलने वाले फंड की ओर है। हम विदेशों में हिंदी को पहुंचाने की बात कर रहे हैं, लेकिन भारत में ही हिंदी पूरी तरह प्रसारित नहीं है। हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए अनुवाद मंत्रालय बनाने की जरूरत है। देश की जिनती भाषाएं हैं उनके साहित्य का परस्पर अनुवाद किया जाए। क्षेत्रीय भाषाओं का इतिहास लिखा जाए, साथ ही अहिंदी भाषी हिंदीसेवियों, हिंदी में शोध कर रहे विद्यार्थियों को विशेष छात्रवृत्ति दी जाएग।

सरकारी खरीद के कारण अलोकप्रिय हो रही हिंदी

असम में हिंदी के साहित्यकार कम हैं, लेकिन जिनते भी हैं वहां उनका बहुत आदर होता है। हर साल हिंदी साहित्यकारों का वहां एक मेला लगता है, जिसमें पूरे प्रदेश के साहित्यकार एकत्रित होते हैं। एक लेखक को इसका सभापति बनाया जाता है कि इसे एक राजा की तरह सालभर रखा जाता है। वहां किताबें बहुत सस्ती हैं और शादी-विवाह में लोग अमूल्य तोहफों की जगह किताबें गिफ्ट करते हैं। हिंदी की किताबें सरकारी खरीद में जाती हैं, जिसके कारण वहां किताबों का मूल्य बहुत कम होता है। मुझे लगता है कि हिंदी की किताबों की लोकप्रियता सरकारी खरीद के कारण भी घट रही है। दरअसल, सरकारी खरीद के कारण प्रकाशकों को पता होता है कि, कोई भी कन्टेंट हो, वे किताब के बिकने को लेकर लॉस में नहीं जाएंगे। यही वजह है कि, किसी भी तरह की सामग्री को निश्चिंत होकर छाप रहे हैं, जो हिंदी लेखन के दर्जे को घटा रहा है और आम पाठकों के बीच इसकी लोकप्रियता कम हो रही है।

हिंदी में अंग्रेजी को घुसाना एक साजिश है

हिंदी में अंग्रेजी को घुसा देना, वह हिंदी को विकृत करने की साजिश है। युवा हिंदी को अगर नहीं पढ़ रहे, उसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है हिंदी खराब लिखी जा रही है। दरसअल, हिंदी पढ़ी नहीं जा रही है। जिस कारण है बच्चों को शुरुआत से ही मिल रही कॉन्वेंट एजुकेशन। अंग्रेजी के कारण केवल हिंदी ही नहीं दूसरी क्षेत्रीय भाषाएं भी संकट में हैं। यह भ्रम है कि यदि अंग्रेजी नहीं सीखी तो विकास नहीं हो पाएगा। बहुत से और देश हैं जहां अंग्रेजी नहीं बोली जाती, फिर भी वे विकसित हैं। हमें अपने अंदर से यह भ्रम निकालना होगा कि बिना अंग्रेजी के काम नहीं चल सकता। गौरतलब है कि, दिनकर कुमार अभी तक 55 असमिया किताबों का अनुवाद कर चुके हैं। साथ ही, उनके छह कविता संग्रह, 2 जीवनी, 2 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।