भगवान भौतिक जगत के पालन व निर्वाह के लिए प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी नहीं हैं। हम एटलस (एक रोमन देवता) को कंधों पर गोला उठाये देखते हैं। वह अत्यन्त थका लगता है और इस विशाल पृथ्वीलोक को धारण किये रहता है। हमें किसी ऐसे चित्र को मन में नहीं लाना चाहिए, जिसमें कृष्ण इस सृजित ब्रह्मांड को धारण किये हों। उनका कहना है कि यद्यपि सारी वस्तुएं उन पर टिकी हैं, सारे लोक अन्तरिक्ष में तैर रहे हैं और यह अन्तरिक्ष परमेश्वर की शक्ति है किन्तु वे अन्तरिक्ष से पृथक स्थित हैं। भगवान कहते हैं, यद्यपि सब रचित पदार्थ मेरी अचिंत्य शक्ति पर टिके हैं, किन्तु भगवान रूप में मैं उनसे पृथक रहता हूं। यह भगवान का अचिंत्य ऐश्वर्य है।
वैदिककोश निरुक्ति में कहा गया है- परमेश्वर शक्ति का प्रदर्शन करते हुए अचिंत्य आश्चर्यजनक लीलाएं कर रहे हैं। उनका व्यक्तित्व विभिन्न शक्तियों से पूर्ण है और संकल्प स्वयं एक तथ्य है। भगवान को इसी रूप में समझना चाहिए। हम कोई काम करना चाहते हैं, तो अनेक विध्न आते हैं और कभी-कभी जो चाहते हैं वह नहीं कर पाते।
किन्तु जब कृष्ण कोई कार्य करना चाहते हैं, तो सब इतनी पूर्णता से सम्पन्न हो जाता है कि कोई सोच नहीं पाता कि यह सब कैसे हुआ! भगवान समझाते हैं-यद्यपि वे समस्त सृष्टि के पालक तथा धारणकर्ता हैं, किन्तु वे इस सृष्टि का स्पर्श नहीं करते। उनके मन और स्वयं उनमें कोई भेद नहीं है। वे हर वस्तु में उपस्थित हैं, किन्तु सामान्य व्यक्ति समझ नहीं पाता कि वे साकार रूप में उपस्थित हैं। वे भौतिक जगत से भिन्न हैं तो भी प्रत्येक वस्तु उन्हीं पर आश्रित है। इसे ही भगवान की योगशक्ति कहा गया है।
भगवान का अचिंत्य ऐश्वर्य
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