मुंबई। बांबे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के उस प्रस्ताव को रद कर दिया है, जो शादीशुदा बेटियों को खुदरा केरोसिन लाइसेंस देने के लिए परिवार का सदस्य नहीं मानता था। अदालत ने कहा कि सरकार का यह प्रस्ताव संविधान का उल्लंघन करता है। बेटियां शादी के बाद भी माता-पिता के परिवार का हिस्सा होती हैं।

न्यायाधीश अभय ओका और एएस चांडूर्कर की पीठ ने शादीशुदा बेटियों को परिवार का हिस्सा न मानने वाले सरकार के प्रस्ताव के विरोध में दायर याचिका पर यह व्यवस्था दी। महाराष्ट्र सरकार ने प्रस्ताव 20 फरवरी 2004 को पारित किया था। याचिका खुदरा केरोसिन लाइसेंसधारक की बेटी रंजना अनेराव की ओर से दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता की दलील थी कि वह परिवार का ही हिस्सा है, लिहाजा मां के निधन के बाद उनकी जगह उसके नाम पर लाइसेंस जारी किया जाए। उसके भाई ने सरकार के प्रस्ताव का हवाला देते हुए कहा कि उसकी बहन की शादी हो चुकी है, इसलिए अब वह परिवार की सदस्य नहीं है। याचिकाकर्ता ने 26 फरवरी 2013 को जारी एक अन्य सरकारी प्रस्ताव का हवाला दिया, जो शादीशुदा बेटी को अनुकंपा के आधार पर नौकरियों में नियुक्ति का हक देता है। हालांकि इसके लिए बेटी व उसके पति को परिवार की देखभाल करने का शपथपत्र देना जरूरी होता है। याचिकाकर्ता ने 19 मई 2014 को जारी एक अन्य सरकारी प्रस्ताव का उदाहरण दिया, जिसमें एक स्वतंत्रता सेनानी या उसकी विधवा खुद को मिलने वाले लाभ के लिए अपनी शादीशुदा बेटी को नामित कर सकते हैं।