नई दिल्ली । वस्तु एवं सेवा कर [जीएसटी] को लागू करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए राज्यों ने दस लाख रुपये से अधिक के सालाना कारोबार को जीएसटी के दायरे में लाने का फैसला किया है। राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति जीएसटी लागू करने के लिए सालाना कारोबार की न्यूनतम सीमा को 25 लाख से घटाकर 10 लाख रुपये करने पर राजी हो गई है। जीएसटी में केंद्र के उत्पाद शुल्क व सेवा कर और राज्यों के वैट, चुंगी जैसे टैक्स शामिल होंगे।

समिति ने बुधवार को यह हुई अपनी बैठक में केंद्र से राज्यों को 1.5 करोड़ रुपये तक के सालाना कारोबार पर टैक्स वसूलने का कानूनी अधिकार देने का आग्रह भी किया है। समिति ने केंद्र से जीएसटी से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक में राज्यों को जीएसटी से होने वाले नुकसान की भरपायी का प्रावधान करने का भी आग्रह किया है। समिति के चेयरमैन व जम्मू-कश्मीर के वित्त मंत्री अब्दुल रहीम राथेर ने बैठक के बाद संवाददाताओं बातचीत की। उन्होंने बताया कि दोहरे नियंत्रण के सवाल पर समिति ने केंद्र को सुझाव दिया है कि 1.5 करोड़ तक के वार्षिक कारोबार पर असेसमेंट और ऑडिट का अधिकार भी राज्य सरकारों को दे दिया जाना चाहिए। इस काम में केंद्र को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

समिति चाहती है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों के नियंत्रण के मामले में केवल वही कारोबारी आएं जिनका सालाना कारोबार डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक हो। ऐसे कारोबारियों से केंद्र टैक्स का संग्रह करे और राज्यों को उनके हिस्से का भुगतान करे। इससे कम कारोबार वाले राज्य सरकारों को टैक्स अदा करें। इसमें से केंद्र को उसके हिस्से का भुगतान किया जाएगा। यह फार्मूला जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों को होने वाले राजस्व के संभावित नुकसान को देखते हुए निकाला गया है। ऐसा होने से राज्यों को राजस्व के लिए केंद्र से मिलने वाले हिस्से का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

राथेर ने बताया कि सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिए कारोबार की अधिकतम सीमा 10 लाख रुपये और पूर्वोत्तर के विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों के लिए पांच लाख रुपये तय की गई है। जहां तक कुछ आइटम जीएसटी के दायरे से बाहर रखने की बात है तो राज्य पहले ही केंद्र को बता चुके हैं कि पेट्रोलियम और तंबाकू उत्पादों को इसमें शामिल नहीं किया जाए।