दिल्ली के उपराज्यपाल के अधिकारों को लेकर गृह मंत्रालय से जारी अधिसूचना पर चर्चा करने के लिए आम आदमी पार्टी के विधायक रविवार को बैठक कर सकते हैं. यह बैठक दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के घर पर 12:30 बजे होगी. बैठक में गृहमंत्रालय की अधिसूचना पर केंद्र को घेरने और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक जाने की भी चर्चा हो सकती है.

गौरतलब है कि केजरीवाल सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन पर चर्चा कराने के लिए 26-27 मई को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है.

सीएम अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच 'दायरे' को लेकर जो टकराव की स्थ‍िति पैदा हुई थी, उसके मद्देनजर गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दिल्ली सरकार को उसकी संवैधानिक सीमा बताई थी. अब इस अधिसूचना पर चर्चा कराने के लिए दिल्ली सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है. ऐसी अटकलें हैं कि इस अधिसूचना के खिलाफ दिल्ली विधानसभा में कोई प्रस्ताव पास हो सकता है. समझा जा रहा है कि अधिसूचना के खिलाफ विधानसभा से पारित प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा.

आगे भी बढ़ सकती है विशेष सत्र की अवधि
दिल्ली सरकार ने एक वक्तव्य जारी कर कहा, 'दिल्ली विधानसभा से उसकी शक्ति छीनने वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना पर चर्चा के लिए 26 और 27 मई को विधानसभा का दो दिन का विशेष सत्र बुलाया गया है.'

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में शनिवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया.

वक्तव्य में कहा गया है कि संविधान विशेषज्ञों जैसे केके वेणुगोपाल और पूर्व महाधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम से लिया गया कानूनी परामर्श बैठक के दौरान मंत्रिमंडल के सामने पेश किया गया और उस पर चर्चा की गई.

वक्तव्य के अनुसार, 'मंत्रिमंडल ने यह भी निर्णय लिया है कि जरूरत पड़ने पर विधानसभा के इस विशेष सत्र को आगे भी बढ़ाया जा सकता है.'

अब कोर्ट-कचहरी में ही समाधान...
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी कर विवाद को उपराज्यपाल के हक में खत्म करने की कोशिश की थी. लेकिन केजरीवाल अब कानूनी विकल्प तलाश रहे हैं. मतलब, दिल्ली सरकार विवाद को कचहरी में ले जाने की तैयारी कर रही है.

सूत्रों के मुताबिक, पूर्व सलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम ने दिल्ली सरकार को भेजी अपनी राय में केंद्र के नोटिफि‍केशन को असंवैधानिक बताया है. गोपाल सुब्रमण्यम ने लिखा है, 'मुझे उम्मीद है कि ये नोटिफिकेशन राष्ट्रपति की अनुमति के बिना ही जारी हुआ है. ऐसे में ये पूरी तरह असंवैधानिक है.'  

दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में सीएम केजरीवाल का समर्थन किया है. उन्होंने अपने एक ट्वीट में संविधान का जिक्र करते हुए कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 239 के अनुसार जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से ही शासित होगी. इस नियम के अनुसार शासन का अधिकार केजरीवाल को होना चाहिए. मुख्यमंत्री इस मामले में राष्ट्रपति से दखल की मांग करें.'

कानून के जानकारों की राय जुदा...
हालांकि कानून विशेषज्ञों की इसमें एक जैसी राय नहीं है. दूसरे संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक, अधिसूचना जारी करने से पहले राष्ट्रपति से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है.

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच जारी विवाद के बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी कर भूमि, सेवा, पुलिस जैसे मामलों में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम बताया था. जरूरत पड़ने पर उपराज्यपाल इन मामलों में मुख्यमंत्री से सिर्फ सलाह ले सकते थे. इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली के मुख्यमंत्री न तो आईएएस, आईपीएस का ट्रांसफर कर सकते हैं, न ही उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकते हैं. ये दोनों अधिकार लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास है. इस फरमान से केजरीवाल इतने नाराज हुए कि उन्होंने एलजी की तुलना अंग्रेजों के वायसराय से कर दी थी.

बहरहाल, जुबानी जंग, आरोप-प्रत्यारोप, तबादलों और दफ्तर पर तालाबंदी से होते हुए दिल्ली में केजरीवाल बनाम नजीब की 'जंग' अब अदालत की चौखट पर पहुंचने वाली है.