बीजिंग : भारत और चीन शुक्रवार को सीमा विवाद के जल्द से जल्द ‘राजनीतिक’ समाधान पर सहमत हुए जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीजिंग से कहा कि वह कुछ मामलों पर अपने नजरिए पर दोबारा विचार करे और चीनी पर्यटकों के लिए ई-वीजा और दोनो देशों के बीच हॉटलाइन संचालित करने जैसे विश्वास बहाली उपायों का ऐलान किया। पीएम मोदी शुक्रवार शाम शंघाई के लिए रवाना हो गए। शंघाई में शनिवार को मोदी उद्योग जगत की हस्तियों के साथ बैठक करेंगे।
मोदी ने चीन के प्रधानमंत्री ली के कियांग से बात की और ‘सीमा के सवाल पर हमारी स्थिति पर किसी पूर्वाग्रह के बिना’ वास्तविक नियंत्रण रेखा को स्पष्ट करने की हिमायत करते हुए कहा, ‘सीमा क्षेत्र के संवेदनशील इलाकों पर अनिश्चितता की छाया हमेशा मंडराती रहती है क्योंकि कोई पक्ष नहीं जानता कि इन इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा कहां है।’
अपनी तीन दिन की चीन यात्रा के दूसरे दिन मोदी और ली ने ग्रेट हॉल ऑफ पीपुल में 90 मिनट की अपनी बातचीत में व्यापक मुद्दों पर विचार विमर्श किया। इस दौरान व्यापार असंतुलन, आतंकवाद, निवेश, जलवायु परिवर्तन और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वय और संयुक्त राष्ट्र सुधारों पर चर्चा की गई।
मोदी ने गुप्तचर एजेंसियों की चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए चीनी पर्यटकों को ई.वीजा की सुविधा देने का ऐलान कर दिया।
ली के साथ संयुक्त मीडिया संवाद के दौरान भारतीय नेता ने बीजिंग से कहा कि ‘वह हमारे कदमों को पीछे खींच लेने वाले कुछ मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण पर दोबारा विचार करें।’ यहां उनकी मुराद लंबे समय से अनसुलझे पड़े सीमा मामलों से थी, जिनमें अरूणाचल प्रदेश के निवासियों को चीन द्वारा नत्थी वीजा देने का मामला शामिल है। इस क्षेत्र पर चीन अपना दावा करता है।
सूत्रों ने कहा कि मोदी ने सीमा मुद्दे पर एक स्पष्ट और बेबाक संदेश दिया कि ‘पीछे जाने का कोई सवाल नहीं है’ और ‘अपनी जगह पर खड़े रहना भी कोई विकल्प नहीं है।’ दोनो पक्षों ने अपने सैन्यकर्मियों के सीमा मुलाकात स्थलों को मौजूदा चार से बढ़ाकर छह करने का फैसला किया। उन्होंने सीमा पर शांति और सौहार्द बनाए रखने को रिश्तों की सतत् बढ़वार और विकास के लिए महत्वपूर्ण कारक बताया।
यह याद दिलाते हुए कि भारत और चीन के संबंध पिछले कुछ दशकों से ‘पेचीदा’ रहे हैं, मोदी ने कहा कि दोनो देशों की यह ‘ऐतिहासिक जिम्मेदारी’ है कि वह अपने संबंधों को एक दूसरे के लिए शक्ति का स्रोत बनाएं और विश्व के कल्याण के लिए एक ताकत बनाएं।’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दोनो देशों को एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशील होना होगा और वीजा नीतियों से लेकर सीमापार नदियों तक के परेशान करने वाले मामलों के सकारात्मक समाधान के बारे में सोचना होगा।
मोदी ने ली के साथ अपनी बातचीत को स्पष्ट, सकारात्मक और मित्रवत बताया, जिसमें ‘सभी मुद्दों’ पर बात हुई। ली ने कहा कि मिलकर विकास मे नजदीकी भागीदारी तैयार करने के लिए चीन भारत के साथ काम करने के लिए तैयार है।
बाद में सिंघुआ विश्वविद्यालय में अपने संबोधन में मोदी ने कहा, ‘अगर हमें हमारी भागीदारी की जबर्दस्त क्षमता को महसूस करना है तो हमें हमारे रिश्तों में संकोच, शंकाओं और यहां तक कि अविश्वास पैदा करने वाले मामलों को सुलझाना होगा।
इस संबंध में द्विपक्षीय समझौतों, करारों और सीमा तंत्र को उपयोगी बताते हुए उन्होंने कहा, ‘मैंने एलएसी के स्पष्टीकरण की प्रक्रिया शुरू करने का सुझाव दिया है। हम सीमा मसले पर हमारे पूर्वाग्रह के बिना ऐसा कर सकते हैं।’
मोदी ने कहा, सबसे पहले, ‘हम सीमा के सवाल को जल्दी हल करने का प्रयास करें। हम दोनो इस बात से वाकिफ हैं कि यह इतिहास की धरोहर है। इसे सुलझाना भविष्य के लिए हमारी साझा जिम्मेदारी है। हमें नये उद्देश्यों और प्रतिबद्धताओं के साथ आगे बढ़ना होगा।’
इस बात पर जोर देते हुए कि हम समस्या का जो समाधान चुनें वह सीमा विवाद को हल करने से कहीं ज्यादा होना चाहिए, मोदी ने कहा, ‘यह इस तरह से किया जाना चाहिए जो हमारे संबंधों में बदलाव लाए और नये अवरोध न खड़े करे।’ मोदी ने कहा कि सीमा विवाद को भारत-चीन संबंधों, जो हाल के दशकों में पेचीदा रहे हैं, की बढ़वार को रोकना नहीं चाहिए। उनकी इस राय से ली ने भी सहमति जताई।
संयुक्त बयान में कहा गया कि चीनी पक्ष ने अन्तरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार प्रयासों को मजबूत करने की कोशिश के तहत भारत की परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल होने की आकांक्षा को समझा है। भारत चार निर्यात नियंत्रण समूहों का हिस्सा बनने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है।
दोनो पक्षों ने दोनो नेताओं की मौजूदगी में 24 सहयोग दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। इनमें रेलवे, खनन, शिक्षा, अंतरिक्ष, गुणवत्तापूर्ण निरीक्षण, फिल्म एवं टेलीविजन, सागर, भूकंप विज्ञान आदि शामिल है।
मोदी और ली इस बात पर सहमत थे कि क्षेत्र में और विश्व में दो बड़ी ताकतों के तौर पर भारत और चीन का एक साथ उभरना एशियाई शताब्दी को मूर्त रूप देने का एक सशक्त अवसर प्रदान करेगा।
दोनो पक्षों ने हर तरह के आतंकवाद की निंदा की और इससे निपटने की दिशा में सहयोग का संकल्प लिया। बयान में कहा गया कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि पर बातचीत जल्द निपटाने का आह्वान किया।
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