वाशिंगटन : 2008 के मुम्बई हमले मामले में अपनी भूमिका को लेकर 35 साल की कैद की सजा काट रहे लश्कर ए तैयबा के पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी आतंकवादी डेविड हेडली ने जेल में इस बात पर एक संस्मरण लिखा है कि ‘कश्मीर की आजादी’ के प्रति लश्कर के समर्पण ने उसे कैसे इस आतंकवादी संगठन से जुड़ने की प्रेरणा दी.
अमेरिकी टीवी कार्यक्रम फ्रंटलाइन को इस संस्मरण का मसौदा मिला जिसे हेडली (54) ने जेल में लिखा है.
पुस्तक के मसौदे के कुछ अंश से कट्टरपंथ की ओर हेडली के झुकाव, लश्कर ए तैयबा में उसके प्रशिक्षण और जायलैंड्स पोस्टन अखबार के खिलाफ डेनमार्क हमले के लिए उसकी तैयारी के बारे में एक झलक मिलती है.
संस्मरण के अनुच्छेदों में से एक में हेडली ने अक्टूबर, 2000 में लश्कर आतंकवादियों से हुई अपनी पहली मुलाकात के बारे में लिखा है.
उसने लिखा है, ‘अक्टूबर, 2000 में अपनी एक यात्रा के दौरान मैंने संयोगवश लश्कर ए तैयबा से पहली मुलाकात की. मैं नवंबर में उसके एक वार्षिक सम्मेलन में शामिल हुआ. मैं भारतीय आधिपत्य से कश्मीर की मुक्ति के प्रति उनके समर्पण से बड़ा प्रभावित हुआ.’ उसने मुम्बई हमले के बारे में लिखा है, ‘योजना मछलियां पकड़ने वाली एक भारतीय नौका पर कब्जा करने की थी जो भटक कर पाकिस्तानी समुद्री सीमा में चली जाती थी और उस नौका को मुम्बई ले जाना था. उम्मीद थी कि भारतीय तटरक्षक बल भारतीय नौका का संज्ञान नहीं लेगा. लड़कों (आतंकवादियों) के पास जीपीस उपकरण होगा जो उसे उस गंतव्य तक का रास्ता बताएगा जिसे मैंने पहले चुना था.’
हेडली ने संस्मरण में 9/11 के हमले के बाद लश्कर से पूर्णकालिक रूप से जुड़ने के अपने फैसले के बारे में विस्तार से बताया है और कहा कि 2002 तक इस संगठन ने उसे मूलभूत सैन्य प्रशिक्षण ‘दौरा अम्मा’ हासिल करने का निर्देश दिया जो लश्कर देता था. 2005 में लश्कर ने उसे अपना नाम दाऊद गिलानी से बदलकर कोई ऐसा नाम रखने को कहा जो किसी ईसाई का नाम जान पड़े ताकि वह आसानी से अमेरिका, भारत और पाकिस्तान के बीच यात्रा कर सके और खुफिया एजेंसियों के लिए उस पर नजर रखना मुश्किल हो.
उसने लिखा, ‘अंतत: जून में मेरे वरिष्ठ सहयोगी साजिद मीर ने मुझे अमेरिका लौटने और ईसाई जैसा कोई नाम रखने तथा उस नाम से नया अमेरिकी पासपोर्ट बनवाने को कहा. उसने (मीर ने) मुझे बताया कि चूंकि मैं पाकिस्तानी जैसा नहीं दिखता, अतएव मुझे भारत की यात्रा पर जाना होगा. दूसरी बात, मैं धारा प्रवाह हिंदी एवं उर्दू बोलता हूं, यह विशेषता मेरे लिए लाभकारी होगी.’ लश्कर के शिविर में मिले प्रशिक्षण का ब्योरा देते हुए हेडली ने लिखा है, ‘हम दिन में ज्यादातर वक्त गुफाओं और पेड़ों के नीचे छिपे रहते थे, और हमें विभिन्न पाठों पर निर्देश दिए जाते थे.’ उसने कहा कि पाठ के ज्यादातर व्यावहारिक पक्ष रात में सिखाए जाते थे और कोर्स के दौरान उसे घुसपैठ करना, बच निकलना, भेस बदलना, छापा, घात लगाकर हमला करना, छिपना, हथियार हासिल करना तथा एके 47 और नौ एमएम पिस्तौल, आरपीजी और ग्रेनेड चलाना सिखाया जाता था.