पिछले महीने 15 अगस्त को अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के बाद एक तबका प्रचारित करने में लगा था कि तालिबान बदल गया है और उसका रवैया उदारवादी हो गया है। हालांकि, पिछले तीन सप्ताह में जमीन पर ऐसा कुछ दिखा नहीं। तालिबान की अंतरिम सरकार में जिन चेहरों को जगह मिली है, उससे साफ हो गया है कि भारत की मुश्किलें बढ़ने वाली है। दोहा में तालिबान के जिस ग्रुप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्ता शुरू की थी और भारत से भी संपर्क साधा था, उसे सरकार में करीब-करीब किनारे कर दिया गया है।
नई कैबिनेट में 33 में से 20 कंधार केंद्रित तालिबान गुट और हक़्कानी नेटवर्क के कट्टरपंथी हैं। इन लोगों पर पाकिस्तान का असर जगजाहिर है कि तालिबान की अंतरिम सरकार में कम-से-कम छह ऐसे मंत्री हैं, जिन्होंने पाकिस्तान के जामिया हक़्कानिया सेमीनरी यानी अकोरा खट्टक से तालीम हासिल की है।