कहानी - बालक ध्रुव तप करने के लिए जंगल में जा रहे थे। उनकी मां सुनीति ने उनसे कहा था, 'तुम्हारी सौतेली मां सुरुचि ने तुम्हें पिता की गोद में बैठने से रोका तो तुम्हारा मन व्यथित होना ठीक है। भगवान को प्राप्त करो तो पिता की गोद में चढ़ पाओगे। भगवान को पाने के लिए तप करना होगा। ध्यान रखना किसी के कटु वचन अपने मन में नहीं रखना चाहिए। सामने वाले व्यक्ति को जो बोलना था, वह बोल दिया, तुम अपनी तपस्या पर ध्यान दो।'
ध्रुव को रास्ते में नारद जी मिल गए। नारद जी ने ध्रुव को गुरु मंत्र दिया - ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय। इस मंत्र का जाप करते हुए ध्रुव ने तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए तो उन्होंने ध्रुव से कहा, 'तुम्हारा राज्य अखंड होगा। आने वाले समय में तुम्हारा यश गान होगा।' ये बोलकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए।
भगवान के जाने के बाद ध्रुव को समझ आया कि भगवान ने मुझे वो दे दिया जो मेरे पास पहले से है और भविष्य में भी मुझे ये सब चीजें अपने परिश्रम से अर्जित करना है। मैंने भगवान से ये सब क्या मांग लिया? भगवान सामने थे तो मुझे स्वयं भगवान को ही मांगना था। मेरे मन में सौतेली मां के कटु वचन कहीं न कहीं बसे हुए थे। इसलिए मैं भगवान से कुछ मांग नहीं सका, क्योंकि मेरी बुद्धि भ्रमित हो गई थी।
सीख - जब जीवन में कोई उपलब्धि मिले तो हमारा आचरण कैसा होना चाहिए, ये हमें पहले से ही तय करना चाहिए। हमारे मन में दूसरों के बोले गए कटु वचन और दूसरों के लिए बुरी बातें चल रही हैं तो इसका हमारे निर्णय पर गलत असर होता है, हमारी बुद्धि ठीक से काम नहीं कर पाती है। इसलिए हमें अपनी आलोचनाओं और दूसरों के द्वारा हमारे लिए बोली गईं गलत बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।