नई दिल्ली: हाल ही में एक बार फिर से लांच किए गए किसान विकास पत्र पर अब कालेधन का खतरा मंडरा रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल एक बार फिर से किसान विकास पत्र पेश तो कर दिया, लेकिन अब इसकी गंभीर खामियों पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
सबसे बड़ी खामी यह बताई जा रही है कि सरकार की आधिकारिक विज्ञप्ति या 23 सितंबर को इस बारे में जारी हुई अधिसूचना में ग्राहकों की जानकारी के बारे में किसी नियम का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इससे अब यह खतरा बना है कि यह योजना काले धन को जमा करने का जरिया बन सकती है।
हालांकि वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि जनवरी 2012 से ही राष्ट्रीय बचत योजनाओं के बारे में भारतीय रिजर्व बैंक के 'अपने ग्राहक को जानें' (केवाईसी) नियम डाक घर और बैंकों पर लागू हैं। इसीलिए केवीपी पर भी ये नियम स्वाभाविक तौर पर लागू होंगे। अधिकारियों ने यह भी कहा कि इस योजना के जरिये अगले वित्त वर्ष में उन्हें कम से कम 35,000 करोड़ रुपये जमा होने की उम्मीद है। केवीपी की अधिसूचना के मुताबिक जमाकर्ता रकम का भुगतान चेक से भी कर सकता है और नकद भी। इसका मतलब है कि जमाकर्ता की पहचान तो दर्ज की जाएगी, लेकिन नकद जमा होने की सूरत में यह पता करना मुश्किल होगा कि रकम कहां से आई।
इसी मोर्चे पर केवीपी के नए अवतार की आलोचना करते हुए पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, 'किसान विकास पत्र को दोबारा शुरू करने के पीछे सरकार का स्वाभाविक उद्देश्य बचत को बढ़ावा देना है। लेकिन इस दलील पर शुबहा होता है क्योंकि स्थिर आय वाली कई अन्य योजनाएं हैं, जो बेहतर रिटर्न देती हैं।'
उन्होंने कहा कि सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि रकम नकदी के रूप में जमा होगी या चेक अथवा बैंक ड्राफ्ट के जरिये। यह भी बताना होगा कि स्थायी खाता संख्या (पैन) का जिक्र करना अनिवार्य है या नहीं।
उन्होंने पूछा, 'कौन से केवाईसी नियम हैं। यदि हैं तो केवीपी में निवेश पर वे लागू हैं या नहीं? क्या केवीपी को जितनी बार चाहें, उतनी बार किसी दूसरे को हस्तांतरित किया जा सकता है? यदि ऐसा है तो इसे खरीदने वाले पहले व्यक्ति पर केवाईसी लागू करने का क्या मतलब रह जाएगा?'
आईआईएम बेंगलूरु के पूर्व प्रोफेसर और राज्य सभा सदस्य राजीव गौड़ा ने कहा, 'यदि सरकार ऐसी योजना ला रही है, जिससे काला धन सफेद किया जा सकता है तो काले धन का पता लगाने में उसकी गंभीरता पर सवाल खड़े हो सकते हैं। कहा तो यह जा रहा है कि केवीपी उन ग्रामीणों के लिए हैं, जिनके पास निवेश के पर्याप्त विकल्प नहीं हैं। लेकिन मौजूदा अवतार में कोई भी इसे खरीद सकता है। केवाईसी के जमाने में आप ऐसी योजना ला रहे हैं, जिसमें निवेशक से यह नहीं पूछा जा रहा कि रकम कहां से आई तो आप काले धन को सफेद करने के लि न्योता दे रहे हैं।'
जेटली ने केवीपी जारी करते वक्त कल कहा था कि इसके सर्टिफिकेट बेनामी होंगे, जिन पर धारक का नाम नहीं होगा। लेकिन सरकारी अधिकारियों ने यकीन जताया कि केवाईसी के सख्त नियम इसमें काले धन को नहीं आने देंगे। केवीपी 1988 में शुरू किए गए थे, जिन्हें नवंबर 2011 में खत्म कर दिया गया था।
हालांकि उस वक्त भी ये खासे लोकप्रिय थे और 2009-10 में इनमें कुल 21,631 करोड़ रुपए की रकम जमा की गई थी। यह योजना श्यामला गोपीनाथ समिति की सिफारिशों के आधार पर खत्म की गई थी। यह समिति राष्ट्रीय लघु बचत कोष की समग्र समीक्षा के लिए गठित की गई थी। अपनी रिपोर्ट में इसने कहा था कि केवीपी के जरिये काला धन प्रणाली में आ सकता है। रिपोर्ट में लिखा था, 'समिति को लगता है कि केवीपी को खत्म किया जा सकता है क्योंकि बेनामी सर्टिफिकेट होने के कारण इनका दुरुपयोग किया जा सकता है।'
किसान विकास पत्र पर अब काले धन का खतरा!
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