नई दिल्ली : चुनावी कोषों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देशों पर राजनीतिक दलों के रूख को खारिज करते हुए आयोग ने बुधवार को स्पष्ट किया कि वे निर्देश ‘बाध्यकारी’ हैं। इसके साथ ही आयोग ने आगाह किया कि दिशानिर्देशों का उल्लंघन होने पर उनकी मान्यता वापस ली जा सकती है।
आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को सख्त लहजे में दो पृष्ठों का एक पत्र भेजा है। इसमें आयोग ने कहा कि दिशानिर्देश आवश्यक हैं क्योंकि हाल में चुनाव प्रचार के दौरान काले धन का ज्यादा इस्तेमाल होने का पता लगा है और इससे चारों तरफ गंभीर चिंता है।
कई पार्टियों ने उन दिशानिर्देशों को वापस लिए जाने की मांग की थी और उन्हें ‘कानूनी रूप से नहीं टिकने वाला तथा अस्पष्ट’ बताया था। दिशानिर्देश एक अक्तूबर को प्रभाव में आया। आयोग ने कहा कि सभी मान्यताप्राप्त राजनीतिक दलों के साथ मशविरा करने के बाद दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं। इस प्रकार आयोग द्वारा जारी कानूनी दिशानिर्देश अनुच्छेद 324 के तहत सभी राजनीतिक दलों के लिए बाध्यकारी हैं और उनके उल्लंघन से चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता बाधित होगी। चुनाव आयोग ने कहा कि उसका प्रयास रहा है कि सभी राजनीतिक दलों और सभी उम्मीदवारों को चुनावों में बराबरी का अवसर मिले।
उसने कहा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए सभी पार्टियों को आयोग द्वारा जारी पारदर्शिता दिशानिर्देश का पालन करने की आवश्यकता है तथा आयोग के वैध निर्देशों का उल्लंघन करने पर चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 16ए के तहत कार्रवाई हो सकती है। इस पैरा में वर्णित प्रावधानों के तहत आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने पर या आयोग के वैध निर्देशों का पालन नहीं करने पर किसी मान्यताप्राप्त राजनीतिक दल की मान्यता वापस ली जा सकती है या निलंबित की जा सकती है।
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा- बाध्यकारी हैं पारदर्शिता दिशानिर्देश
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