नई दिल्ली : केंद्र ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि मुगलकालीन जामा मस्जिद वक्फ की संपत्ति है और यह फैसला उसे करना है कि नए शाही इमाम के चयन में उत्तराधिकार का कानून कैसे लागू होता है।

जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के बेटे शाबान बुखारी की नायब शाही इमाम के तौर पर होने वाली दस्तारबंदी को अदालत में चुनौती दी गई है। केंद्र ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी तथा न्यायमूर्ति आर एस एंडलॉ की पीठ से कहा कि यह अप्रासंगिक है कि किसे आमंत्रित किया गया है और किसे नहीं किया गया है। परेशान करने वाली बात यह है कि हम अपने इतिहास से कैसे पेश आते हैं। यह स्वीकार्य स्थिति है कि यह (मस्जिद) वक्फ की संपत्ति है। यह फैसला किया जाना है कि इमाम की परिपाटी पर उत्तराधिकार का कानून कैसे लागू होगा।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी जामा मस्जिद के संरक्षण की आवश्यकता पर जोर देते हुये अदालत से आग्रह किया है कि जामा मस्जिद को एक प्राचीन धरोहर घोषित किया जाए क्योंकि इसका राष्ट्रीय महत्व है। दस्तारबंदी के फैसले को चुनौती देते हुए बुखारी के खिलाफ दायर तीन अलग अलग जनहित याचिकाओं पर संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यह दलील दी।

सुहैल अहमद खान, अजय गौतम और वीके आनंद की ओर से दायर जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि जामा मस्जिद दिल्ली वक्त बोर्ड की संपत्ति है और बुखारी इसके कर्मचारी है, ऐसे में वह अपने बेटे को नायब शाही इमाम नियुक्त नहीं कर सकते।