चीन में लाओत्से के समय में ऐसी प्रचलित धारण थी कि आदमी के शरीर में नौ छेद होते हैं। उन्हीं नौ छेदों से जीवन प्रवेश करता है और उन्हीं से बाहर निकलता है। दो आंखें, दो नाक के छेद, मुंह, दो कान, जननेंद्रिय, गुदा। इसके साथ चार अंग हैं- दो हाथ और दो पैर। सब मिला कर तेरह। यही तेरह अंग जीवन के साथी हैं और मृत्यु के भी साथी हैं। यही तेरह जीवन में लाते हैं और यही जीवन से बाहर ले जाते हैं। तेरह का मतलब यह पूरा शरीर। इन्हीं से तुम भोजन करते हो; इन्हीं से जीवन पाते हो; इन्हीं से उठते-बैठते और चलते हो। यही तुम्हारे स्वास्थ्य का आधार हैं और यही मृत्यु का भी आधार होंगे। क्योंकि जीवन और मृत्यु एक ही चीज के दो नाम हैं। इन्हीं से जीवन तुम्हारे नाम आएगा, इन्हीं से बाहर जाएगा। इन्हीं से शरीर के भीतर खड़े हो। इन्हीं के साथ शरीर टूटेगा, इनके द्वारा ही टूटेगा।
हैरानी की बात है। यही तुम्हें संभालते हैं और यही मिटाएंगें। भोजन तुम्हें जीवन देता है, शक्ति देता है और भोजन की शक्ति से अपने भीतर की मृत्यु को बड़ा किये चले जाते हो। भोजन तुम्हें बुढ़ापे तक पहुंचा देगा, मृत्यु तक पहुंचा देगा। आंख, नाक, कान से जीवन की श्वास भीतर आती है। उन्हीं से बाहर जाती है। नौ द्वार और चार अंग। लाओत्से कहता है- तेरह ही जीवन के साथी, तेरह ही मौत के साथी। ये तेरह ही ले जाते हैं।
अगर तुम सजग हो जाओ तो तुम चौदहवें हो। इन तेरह के पार हो। इस तेरह की संख्या के कारण चीन और फिर धीरे-धीरे सारी दुनिया में, तेरह का आंकड़ा अपशकुन हो गया। इस सुपरस्टीशन की पैदाइश चीन में हुई। अमेरिका में होटलों में तेरह नंबर का कमरा नहीं होता; तेरह नंबर की मंजिल भी नहीं होती। क्योंकि कोई तेरह नंबर पर ठहरने को राजी नहीं है। तेरह शब्द से ही घबराहट होती है। बारह नंबर के कमरे के बाद चौदह नंबर आता है। असल में होता तो वह तेरहवां ही है, लेकिन जो ठहरता है, उसे चौदह याद रहता है। तेरह की चिंता नही पकड़ती।
चीन में बड़े अर्थपूर्ण कारण से यह विश्वास फैला। तेरह अपशकुन है। तुम चौदहवें हो और तुम्हें चौदहवें का कोई पता भी नहीं। तुम न जीवन हो, न मौत। तुम दोनो के पार हो। अगर इन तेरह के प्रति सजग हो जाओगे, पृथक हूं, मै अन्य हूं। शरीर और, मैं और। और यह जो भीतर भिन्नता, शरीर से अलग चैतन्य का अविर्भाव होगा, इसकी न कोई मृत्यु है, न कोई जीवन है। यह न कभी पैदा हुआ, न कभी मरेगा।
जीवन और मृत्यु
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