भोपाल : नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनी तो स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर की. ये केंद्र का चेहरा है. दूसरा चेहरा बीजेपी शासित मध्य प्रदेश का है, जहां सरकारी अस्पतालों में दवाओं की किस्म का जो सच सामने आया है, वह चौंकाने वाला है. दरअसल, मध्य प्रदेश के अस्पतालों में जिन दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है उनमें से 147 दवाईयां घटिया किस्म की हैं. यह जानकारी सरकार ने ही उपलब्ध करवाई है. यानी इन दवाओं के इस्तेमाल से आप स्वस्थ नहीं बीमार हो सकते हैं.
बहरहाल, मध्य प्रदेश से दवाओं का यह सच एक आरटीआई का नतीजा है. जानकारी मध्यप्रदेश मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय खरे ने दी है. खरे का कहना है कि उन्होंने आरटीआई में ये जानकारी ली थी. मामले में सरकार ने भी आनन-फानन में सफाई दी है. सरकार का कहना है कि अस्पतालों में मिलने वाली सरदार पटेल मुफ्त दवा योजना के तहत जो दो सैंपल थे वो घटिया किस्म के नहीं हैं. लेकिन निजी जगहों के सैंपल पर कार्यवाही की जा रही है.
दूसरी ओर, मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की है. खरे ने आरोप लगाया है कि सरकारी और निजी संस्थानों की 147 दवाएं जांच में घटिया पाई गई है और उन्होंने सरकार से ये जानकारी 1 जुलाई 2012 से 31 मई 2014 के बीच मांगी थी. डॉ. खरे का कहना है ये दवाएं मरीजों के लिए बेअसर साबित हो रही हैं. खरे भोपाल के एक सरकारी अस्पताल में पदस्थ हैं.
डॉ. खरे कहते हैं, 'आरटीआई में जानकारी ली गई थी ड्रग कंट्रोलर के यहां से. इसमें दो साल में कुल 147 दवाएं घटिया किस्म की पाई गई हैं. नुकसान जनता का हो रहा है. जो लोग इस खेल में शामिल हैं वो करप्शन के लिए यूज कर रहे है. हम सब इस मुद्दे को शासन के सामने ला रहे हैं, जनता के सामने ला रहे हैं.'
सरकार का पक्ष
मामले में सरकार में स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा और प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण ने आनन फानन में सफाई दी है. उन्होंने माना कि सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली आयोडीन और जिंक संबंधी दो दवाओं के सैंपल घटिया थे. लेकिन वो केवल 0.5 फीसदी कम थे, जबकि 3 से 5 फीसदी तक की जांच में छूट है. मंत्री ने कहा कि निजी अस्पतालों के सैंपल जो अमानक पाए गए हैं, उनको बाजार से वापस बुलाने के निर्देश दिए गए हैं.
मंत्री ने कहा कि उन्होंने जांच रिपोर्ट के आधार पर 147 में से 104 कंपनियों के बाहर के प्रदेशों की होने से वहां की संस्था को कार्यवाही के लिए पत्र लिखा है. मंत्री ने बताया कि 16 कंपनियों के लायसेंस निलंबित कर दिए गए हैं और 5 के निरस्त कर दिए गए हैं.'
सरकार का कहना है कि मामले में 3025 सैंपल की जांच हुई थी. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी का कहना है कि सरकार कंपनी की दवाओं के स्थान पर जेनरिक दवाएं खरीद रही है और कुछ डॉक्टर उससे खुश नहीं हैं. सरकार का करीब 200 करोड़ का सालाना बजट दवाएं खरीदने का होता है.
मामले में फिलहाल, सरकार और एसोसियेशन के बीच लड़ाई खत्म होने के आसार नहीं हैं, क्योंकि इस लड़ाई में तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ भी एसोसियेशन के साथ हैं. कांग्रेस ने भी सरकार पर इस मामले में भ्रष्टाचार के आरोप लगाएं हैं और जांच की मांग की है.
RTI रिपोर्ट: मध्य प्रदेश के अस्पतालों में 147 दवाएं घटिया किस्म की
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