न्यूर्याक । भारत के साथ हमेशा डबल गेम खेलने वाला पाकिस्तान अब अमेरिका के साथ भी यही रणनीति अपना रहा है। अफगानिस्तान के नाम पर पाक अमेरिका के साथ डबल गेम खेल रहा है। अमेरिकी सेना 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से निकलने से पहले तालिबान और अलकायदा पर नजर रखने के लिए रणनीति तैयार कर रही है। 
अमेरिका चाहता है कि सैनिकों की वापसी से पहले उसे पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर एयर या मिलिट्री बेस मिल जाए, ताकि वह आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले कर सके। ऊपरी तौर पर पाकिस्तान बेशक इससे इंकार कर रहा है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार पिछले दिनों अमेरिका के सीआईए चीफ एक बेहद सीक्रेट विजिट पर पाकिस्तान आए थे, हालांकि पाकिस्तानी सेना और सरकार इस मामले पर मुंह खोलने को तैयार नहीं है। 
पाकिस्तान सरकार यह मानने तैयार नहीं है कि सीआईए चीफ विलियम बर्न्स ने इसी हफ्ते इस्लामाबाद का गुपचुप दौरा किया था, लेकिन, मीडिया में यह खबर लीक हो चुकी है। सवाल यह है कि बर्न्स क्यों आए थे और उनकी किससे और क्या बातचीत हुई। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान सरकार और फौज एयर और मिलिट्री बेस देने पर सौदेबाजी कर रही है। अमेरिकी अधिकारियों का दावा है कि डील तो पहले ही हो चुकी है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि पाकिस्तान सरकार या फौज अमेरिका को अड्डे देने से इनकार नहीं कर सकती। अगर उसने ऐसा किया तो पाकिस्तान बेहद मुश्किल में फंस जाएगा।
सीआईए चीफ ने पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल बाजवा और आईएसआई हेड जनरल फैज से मुलाकात कर चुके हैं। डिफेंस सेक्रेटरी जनरल लॉयड आस्टिन भी पाकिस्तान सरकार और सेना से बात कर चुके हैं। ऐसे में अब इनकार करने का कोई सवाल ही नहीं है। पाकिस्तान ने 2001 में अमेरिका से एक समझौता किया था। जिसके तहत अमेरिकी फौज पाकिस्तान के एयरबेस और एयरस्पेस इस्तेमाल कर सकती है। यानी पुराना समझौता रद्द नहीं किया गया, बल्कि इमरान सरकार सिर्फ नए समझौते से इनकार कर रही है। बता दें कि दुनिया को दिखाने के लिए पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने फिर दोहराया था कि अमेरिका को एयर या मिलिट्री बेस नहीं दिए जाएंगे।