
ITR Forms AY26: इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फॉर्म्स हर साल अलग-अलग प्रकार के टैक्सपेयर्स के लिए एक जरूरी हिस्सा होते हैं। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने असेसमेंट ईयर (AY) 2025-26 के लिए सातों ITR फॉर्म्स (ITR-1 से ITR-7 तक) को नोटिफाई कर दिया है, जो फाइनेंशियल ईयर (FY) 2024-25 यानी 1 अप्रैल 2024 से 31 मार्च 2025 तक की कमाई के लिए लागू होंगे। हर फॉर्म अलग-अलग तरह के टैक्सपेयर्स के लिए बनाया गया है, जिसमें सैलरीड लोग, बिजनेसमैन, HUF, फर्म्स, ट्रस्ट्स और कंपनियां आदि शामिल हैं। CBDT ने इस साल इन फॉर्म्स में कुछ जरूरी बदलाव भी किए गए हैं, खासकर कैपिटल गेन्स, डिडक्शन्स और डिस्क्लोजर रूल्स को लेकर। आइए, हर फॉर्म को विस्तार से समझते हैं और देखते हैं कि AY 2025-26 में क्या नया है।
ITR-1 (सहज): छोटे टैक्सपेयर्स के लिए आसान फॉर्म
ITR-1, जिसे सहज भी कहते हैं, उन लोगों के लिए है जिनकी सालाना इनकम 50 लाख रुपये तक है और वो भारत के रेजिडेंट हैं (यानी जो लोग भारत में कम से कम 182 दिन रहते हैं, लेकिन नॉट ऑर्डिनरिली रेजिडेंट नहीं हैं)। यह फॉर्म सैलरी, पेंशन, एक हाउस प्रॉपर्टी से इनकम, ब्याज (जैसे बैंक डिपॉजिट्स से) और 5,000 रुपये तक की कृषि आय वालों के लिए है।
इस साल इस फॉर्म में एक बड़ा बदलाव ये हुआ है कि अब आप लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) जो सेक्शन 112A के तहत हैं, यानी लिस्टेड शेयर्स या इक्विटी म्यूचुअल फंड्स से 1.25 लाख रुपये तक के गेन्स को इस फॉर्म में दिखा सकते हैं। पहले अगर आपके पास कोई कैपिटल गेन्स होता था, तो आपको ITR-2 भरना पड़ता था, जो ज्यादा जटिल है। अब इस नए बदलाव से छोटे इनवेस्टर्स को राहत मिलेगी, क्योंकि वो आसान फॉर्म में ही अपनी इनकम दिखा सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे, अगर आपके पास कैपिटल लॉस है जिसे कैरी फॉरवर्ड करना है, तो ये फॉर्म आपके लिए नहीं है।
इसके अलावा, ITR-1 उन लोगों के लिए नहीं है जो कंपनी में डायरेक्टर हैं, अनलिस्टेड शेयर्स में इन्वेस्ट करते हैं, या जिनके पास विदेश में कोई संपत्ति या इनकम है। एक और बदलाव ये है कि अब आपको अपने सभी एक्टिव बैंक अकाउंट्स की डिटेल्स देनी होंगी, सिवाय डोरमैंट अकाउंट्स के। साथ ही, अगर आप सेक्शन 80GG (HRA न मिलने पर किराए का डिडक्शन) क्लेम कर रहे हैं, तो आपको फॉर्म 10BA इलेक्ट्रॉनिकली फाइल करना जरूरी है।
ITR-2: सैलरीड और कैपिटल गेन्स वालों के लिए
ITR-2 उन इंडिविजुअल्स और हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (HUF) के लिए है जिनकी इनकम बिजनेस या प्रोफेशन से नहीं है, लेकिन उनके पास सैलरी, एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी, कैपिटल गेन्स (शॉर्ट-टर्म या लॉन्ग-टर्म) या विदेशी संपत्ति/इनकम है। इस फॉर्म को वो लोग भी इस्तेमाल कर सकते हैं जिन्हें अपनी पत्नी या नाबालिग बच्चे की इनकम क्लब करनी हो, बशर्ते वो इनकम ऊपर बताई गई कैटेगरीज में आए। इस साल ITR-2 में कुछ जरूरी बदलाव हुए हैं। पहला, अब आपको कैपिटल गेन्स को अलग-अलग दिखाना होगा—23 जुलाई 2024 से पहले और बाद की ट्रांजैक्शन्स के लिए। ऐसा इसलिए क्योंकि बजट 2024 में प्रॉपर्टी पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को 20% (इंडेक्सेशन के साथ) से घटाकर 12.5% (बिना इंडेक्सेशन) कर दिया गया है। अगर आपने 23 जुलाई 2024 से पहले प्रॉपर्टी खरीदी थी, तो आपके पास ऑप्शन है कि आप 12.5% बिना इंडेक्सेशन चुनें या 20% इंडेक्सेशन के साथ।
दूसरा बड़ा बदलाव ये है कि शेयर बायबैक पर होने वाले लॉस को अब कैपिटल गेन्स सेक्शन में और बायबैक से मिलने वाली रकम को डिविडेंड के तौर पर ‘इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज’ में दिखाना होगा। ये बदलाव फाइनेंस एक्ट 2024 के तहत 1 अक्टूबर 2024 से लागू है।
तीसरा, अगर आपकी टोटल इनकम 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है, तो ही आपको शेड्यूल AL में अपनी एसेट्स और लायबिलिटीज की डिटेल्स देनी होंगी। पहले ये लिमिट 50 लाख थी, जिससे मिडिल-इनकम टैक्सपेयर्स को राहत मिली है। साथ ही, अब आपको TDS सेक्शन कोड्स (जैसे 194I, 194J) बताने होंगे, जिससे ट्रांसपेरेंसी बढ़ेगी।
ITR-3: बिजनेस और प्रोफेशनल्स के लिए
ITR-3 उन इंडिविजुअल्स और HUF के लिए है जिनकी इनकम बिजनेस या प्रोफेशन से है, जैसे कि प्रोप्राइटरी बिजनेस चलाने वाले या प्रोफेशनल्स (डॉक्टर्स, वकील आदि)। इसमें कैपिटल गेन्स, लॉटरी इनकम या एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी की इनकम भी शामिल हो सकती है। इस साल ITR-3 में भी कुछ बदलाव हुए हैं।
पहला, शेड्यूल AL की थ्रेशोल्ड को 50 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दिया गया है, यानी अगर आपकी इनकम 1 करोड़ से कम है, तो आपको अपनी संपत्ति और देनदारियों की डिटेल्स नहीं देनी होंगी।
दूसरा, कैपिटल गेन्स को 23 जुलाई 2024 से पहले और बाद में बांटकर दिखाना होगा, जैसा कि ITR-2 में है।
तीसरा, अगर आप पार्टनरशिप फर्म में पार्टनर हैं, तो आपको ज्यादा डिटेल्स देनी होंगी, जैसे कि फर्म की प्रॉफिट-लॉस डिटेल्स। साथ ही, सेक्शन 80C, 80D जैसे डिडक्शन्स के लिए ड्रॉपडाउन मेन्यू जोड़ा गया है, जिससे फाइलिंग आसान होगी।
ITR-4 (सुगम): छोटे बिजनेस और प्रोफेशनल्स के लिए
ITR-4, जिसे सुगम कहते हैं, उन रेजिडेंट इंडिविजुअल्स, HUF और फर्म्स (LLP को छोड़कर) के लिए है जिनकी टोटल इनकम 50 लाख तक है और जिनकी बिजनेस या प्रोफेशनल इनकम प्रिजम्पटिव टैक्सेशन स्कीम (सेक्शन 44AD, 44ADA, 44AE) के तहत है। इस फॉर्म में भी आप सैलरी, एक हाउस प्रॉपर्टी और ब्याज जैसी इनकम दिखा सकते हैं। इस साल का सबसे बड़ा बदलाव ये है कि अब आप 1.25 लाख तक के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (सेक्शन 112A) को इस फॉर्म में दिखा सकते हैं, बशर्ते आपके पास कोई कैपिटल लॉस न हो।
पहले ऐसे टैक्सपेयर्स को ITR-2 या ITR-3 भरना पड़ता था। इसके अलावा, सेक्शन 44AD (बिजनेस के लिए) का टर्नओवर लिमिट 2 करोड़ से बढ़ाकर 3 करोड़ कर दिया गया है, बशर्ते 95% ट्रांजैक्शन्स डिजिटल हों। प्रोफेशनल्स के लिए सेक्शन 44ADA का लिमिट 50 लाख से बढ़ाकर 75 लाख किया गया है।
साथ ही, अगर आप न्यू टैक्स रिजीम से ऑप्ट-आउट करना चाहते हैं, तो आपको फॉर्म 10-IEA फाइल करना जरूरी है, और इसकी डिटेल्स ITR-4 में देनी होंगी।
ITR-5: फर्म्स और LLP के लिए
ITR-5 फर्म्स, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (LLP), एसोसिएशन ऑफ पर्सन्स (AOP), बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स (BOI) और आर्टिफिशियल ज्यूरिडिकल पर्सन्स के लिए है। इस फॉर्म में भी कैपिटल गेन्स की अलग-अलग रिपोर्टिंग (23 जुलाई 2024 से पहले और बाद) का नियम लागू है।
साथ ही, TDS सेक्शन कोड्स की डिटेल्स देना जरूरी है। अगर आपकी इनकम 1 करोड़ से ज्यादा है, तो शेड्यूल AL में एसेट्स और लायबिलिटीज की जानकारी देनी होगी।
ITR-6: कंपनियों के लिए
ITR-6 उन कंपनियों के लिए है जो कंपनीज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड हैं। इस फॉर्म में भी कैपिटल गेन्स की स्प्लिट रिपोर्टिंग और TDS कोड्स की जरूरत है। इसके अलावा, अगर कंपनी के पास विदेशी इनकम या एसेट्स हैं, तो उनकी डिटेल्स देनी होंगी। इस साल कोई बड़ा बदलाव इस फॉर्म में नहीं हुआ है, लेकिन नए टैक्स रूल्स को ध्यान में रखते हुए डिस्क्लोजर्स को और सख्त किया गया है।
ITR-7: ट्रस्ट्स और चैरिटेबल संस्थानों के लिए
ITR-7 उन यूनिट्स के लिए है, जो सेक्शन 139(4A), 139(4B), 139(4C) या 139(4D) के तहत रिटर्न फाइल करते हैं। इनमें मुख्य रूप से चैरिटेबल ट्रस्ट्स, पॉलिटिकल पार्टियां, साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूशन्स और यूनिवर्सिटीज आदि शामिल होते हें। इस साल इसमें शेयर बायबैक लॉस और डिविडेंड इनकम को अलग-अलग दिखाने का नियम जोड़ा गया है। साथ ही, अगर ट्रस्ट के पास विदेशी रिटायरमेंट अकाउंट्स हैं, तो सेक्शन 89A के तहत उनकी डिटेल्स देनी होंगी।
इन सभी बदलावों का मकसद टैक्स फाइलिंग को आसान और पारदर्शी बनाना है। टैक्सपेयर्स को सलाह दी जाती है कि वे अपनी इनकम और स्टेटस के हिसाब से सही फॉर्म चुनें और 31 जुलाई 2025 की डेडलाइन से पहले रिटर्न फाइल करें।