
मुंबई । शिवसेना ने कहा कि गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन कर भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को नया मुख्यमंत्री बनाने के घटनाक्रम ने कामकाज की उस शैली को प्रतिबिंबित किया है, जो आम तौर पर कांग्रेस से जुड़ी हुई माना जाता है। शिवसेना दावा किया कि गुजरात के विकास मॉडल का गुब्बारा बुलबुले की तरह फूट गया है। शिवसेना ने सवाल किया कि यदि गुजरात प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा था, तो वहां मुख्यमंत्री क्यों बदला गया?
शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित संपादकीय में कहा गया है कि गुजरात के लोग कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य प्रणाली के ध्वस्त होने पर बेहद गुस्से में थे जब विजय रूपाणी मुख्यमंत्री थे। भाजपा को भी यह एहसास हुआ कि पटेल जिस प्रभावशाली पाटीदार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, यह समुदाय पार्टी से नाराज है, जिसके चलते इस पड़ोसी राज्य में शीर्ष स्तर पर यह बदलाव किया गया है।
भाजपा की पूर्व सहयोगी एवं अब महाराष्ट्र में कांग्रेस और राकांपा के साथ सत्ता साझा कर रही शिवसेना ने चुटकी लेते हुए कहा यही चीज कांग्रेस में भी होती है और हमें इसे लोकतंत्र कहना होगा। संपादकीय में दावा किया गया है कि अचानक नेतृत्व परिवर्तन के साथ ही लोकतंत्र का, राज-काज व विकास के गुजरात मॉडल का गुब्बारा किसी बुलबुले की तरह अचानक फट गया है।
पटेल पिछले चार साल में मंत्री भी नहीं रहे हैं, लेकिन उन्हें सीधे मुख्यमंत्री बना दिया गया। गुजरात राज्य यदि विकास, प्रगति के मार्ग पर आगे जा रहा था तो इस तरह से रातों-रात मुख्यमंत्री बदलने की नौबत क्यों आई? जब किसी राज्य को विकास अथवा प्रगति का ‘मॉडल’ साबित करने के लिए उठापटक की जाती है, तब अचानक नेतृत्व बदलने से लोगों के मन में संदेह पैदा होता है।
भूपेंद्र पटेल पर अब गुजरात का भार आ गया है। अगले वर्ष दिसंबर में विधानसभा चुनाव हैं। पटेल को आगे रखकर नरेंद्र मोदी को ही चुनाव लड़ना होगा। जिसे गुजरात मॉडल कहा जा रहा है, वह यही है क्या? पटेल गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के करीबी हैं, जबकि रूपाणी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का समर्थन प्राप्त है। गुजरात में कल की राजनीति जितनी उलझनों वाली होगी, उतनी ही रोचक भी होगी। अहमदाबाद स्थित, वाहन बनाने वाली कंपनी फोर्ड सहित कुछ बड़ी कंपनियों ने राज्य से बोरिया-बिस्तर बांध लिया है जिससे हजारों लोगों पर बेरोजगारी का संकट आ गया है।
शिवसेना के मुखपत्र में प्रकाशित संपादकीय में लिखा है कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान गांवों-गांवों में मृतकों की चिताएं जलती रहीं, सरकार बेबस व हताश होकर मृत्यु का तांडव देख रही थी। कोई उपाय किया जाए, इसका संताप लोगों में बना रहने वाला है। चकाचौंध से दूर रहने वालों को सत्ता देना, यही मोदी की सियासी मंत्र है। गुजरात में वही हुआ। मोदी ने कई बार अचानक नए चेहरों को मौका दिया है। महाराष्ट्र में भी उन्होंने 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद देवेंद्र फडनवीस को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी देकर यही प्रयोग दोहराया था।