नई दिल्ली । एलपीजी सिलेंडर की बढती कीमतों के आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। सरकार ने घरेलू एलपीजी सिलेंडरों पर दी जा रही सब्सिडी भी खत्म कर दी है। इसके बावजूद, देश के 70 फीसदी से ज्यादा भारतीय परिवार खाना पकाने के प्राथमिक ईंधन के रूप में एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अभी भी 54 फीसदी परिवार एलपीजी कनेक्शन होने के बावजूद पारंपरिक ईंधन का इस्तेमाल कर खाना पकाते हैं। इसका खुलासा सीईईडब्ल्यू के एक अध्ययन में हुआ है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक अध्ययन के अनुसार इस समय देश के 85 फीसदी परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन हैं। हालांकि, 54 फीसदी भारतीय परिवारों ने पारंपरिक ठोस ईंधनों का नियमित रूप से उपयोग जारी रखा है, फिर चाहे वह केवल ठोस ईंधनों का उपयोग हो या फिर एलपीजी के साथ अतिरिक्त ईंधन के रूप में। इसके मुताबिक, खाना पकाने के लिए लकड़ी, उपले, कृषि अवशेष, लकड़ी का कोयला (चारकोल) और केरोसिन जैसे पारंपरिक ठोस ईंधनों का उपयोग ऐसे परिवारों के लिए घरेलू वायु प्रदूषण का जोखिम बढ़ा देता है।
अध्ययन में बताया गया है कि बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति खराब है। इसलिए वहां एलपीजी कवरेज और खाना पकाने के लिए प्राथमिक ईंधन के रूप में इसके उपयोग में विशेष रूप से सुधार किया जाना चाहिए। बताते चलें कि पिछले महीने, प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (उज्ज्वला) 2.0 का उद्घाटन किया था, जिसका उद्देश्य देश में एक करोड़ गरीब और प्रवासी परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराना है। सीईईडब्ल्यू में सीनियर प्रोग्राम लीड शालू अग्रवाल ने कहा, एलपीजी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सरकार का उज्ज्वला के पहले चरण के अंतर्गत किया गया प्रयास सराहनीय है, लेकिन 15 फीसदी भारतीय परिवारों के पास अभी भी एलपीजी कनेक्शन नहीं है। उज्ज्वला के दूसरे चरण में सुनियोजित तरीके से लाभार्थी पहचान, संशोधित नामांकन प्रक्रिया और जागरूकता अभियान के माध्यम से इस अंतर को कम करने पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा, सरकार को एलपीजी रिफिल पर सब्सिडी की दोबारा शुरुआत को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि लोग ठोस ईंधन का उपयोग घटा सके, जो महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर अधिक असर डालता है।