नई दिल्ली । कोविड ने लगातार दूसरे साल कूलर कारोबारियों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। अप्रैल से जून 3 महीने ही कूलर का व्यवसाय चरम पर होता है। जुलाई में बारिश आने के बाद काम धीमा होने लगता है। पिछले साल भी इन दिनों में लॉकडाउन रहा और इस साल भी लॉकडाउन है। ‎दिल्ली के एक कूलर कारोबारी का कहना है ‎कि पिछले कुछ कमा नहीं पाए, इस साल सेविंग लगाई थी, जो डूबती दिख रही है। यदि मार्केट खुल जाते हैं, तो रिटेल और होलसेलर का बिजनेस चल सकता है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल और मध्य प्रदेश जैसे राज्य गर्मी की चपेट में रहेंगे। इन राज्यों में बाजार खुलेंगे, तो दिल्ली के निर्माताओं का कुछ माल निकल सकता है। अभी जिनकी सेल महीने में 10 लाख रुपए की होती है, उनकी बामुश्किल 2-3 लाख रुपए की हो पाई है। रिटेल मार्केट में एक कूलर विक्रेता ने कहा कि गोदाम में कूलर भरे हुए हैं। गर्मी भी पड़ रही है। बाजार में कस्टमर नहीं है। दुकान के बाहर लगे बोर्ड पर लिखे मोबाइल नंबर पर भी कॉल करके कोई कूलर की डिमांड नहीं कर रहा। इस सीजन में सिर्फ 10 प्रतिशत कूलर बिक सके हैं। गोदाम किराये पर लिए हैं, बिजली का बिल देना है, लेबर की सैलरी देनी है, घर का खर्चा चलाना है, समझ नहीं आ रहा पैसा कहां से आएगा? अगर जून में सरकार ने ढील मिली, तो थोड़ा माल निकल सकता है, वरना पूरा सीजन खराब हो जाएगा। कारोबारियों के मुताबिक कॉपर, लोहे और प्लास्टिक के दाम बहुत बढ़ गए हैं। लॉकडाउन में ही काफी कच्चा माल महंगा हो गया। 52-53 रुपये किलो मिलने वाली लोहे की शीट 100 रुपये किलो पहुंच गई है। कॉपर के दाम में भी कई गुना इजाफा हुआ है। अलग-अलग ग्रेड की प्लास्टिक के रेट भी बढ़े हैं। निर्माण सामग्री के प्राइज बढ़ने से कूलर भी महंगे हुए हैं। काम ठप है और खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं। मई 2020 में ढील मिली थी, तो थोड़ा काम चल गया। अब जून में कारोबार बिजनेस शुरू होने का इंतजार है।