भोपाल/टीकमगढ़। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में प्रस्तावित वानसुझारा जलाशय की निविदा प्रक्रिया को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि दिनांक 20 मई 2025 को जलाशय निर्माण से जुड़ी निविदा आधे में ही खोल दी गई, जिससे पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो गए हैं। मामले में फर्जी फॉर्म के ज़रिए ठेकेदार को फायदा पहुँचाने और पूर्व निर्धारित रणनीति के तहत एक पक्ष विशेष को लाभ दिलाने की कोशिश का आरोप लगाया गया है।

बोली प्रक्रिया में घपले का आरोप

मध्य महासंघ की रिपोर्ट के अनुसार, 20 मई को निविदा की प्रक्रिया अधूरी रही। उसी दिन Bid (बोली) नहीं खोली गई, जो निविदा प्रक्रिया के नियमों के विरुद्ध है। बाद में दिनांक 22 मई को दूसरी बार निविदा खोली गई, जिसमें 7 निविदाएं प्राप्त हुईं, जिनमें से 3 निविदाएं एक ही संस्था चौधरी फिश सेंटर के नाम से भरी गई थीं।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि चौधरी फिश सेंटर द्वारा तीनों फॉर्म में से एक में जरूरी दस्तावेज, जैसे दस्तावेज़ित पहचान पत्र या पंजीयन प्रमाणपत्र, नहीं लगाया गया था। यही नहीं, एक निविदा में किसी मृत व्यक्ति के नाम से दस्तावेज लगाए गए, जिससे उसकी वैधता स्वतः संदिग्ध हो जाती है।

प्रशासनिक मिलीभगत का संदेह

रिपोर्ट में गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि महासंघ के कुछ अधिकारियों ने सांठगांठ कर चौधरी फिश सेंटर के पक्ष में निविदा पारित करवाई। दस्तावेजों की पुष्टि के बिना उसे वैध माना गया, जो प्रक्रिया और नियमानुसार पूरी तरह गलत है।

परिशिष्ट में साफ निर्देश

संलग्न परिशिष्ट-3 में निविदा प्रक्रिया के दौरान आवश्यक दस्तावेजों की सूची स्पष्ट रूप से दी गई है। चाहे वह व्यक्तिगत बोलीदाता हो, संस्था या फर्म — आधार कार्ड, पैन कार्ड, रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र, GST प्रमाणपत्र, और बैंक स्टेटमेंट जैसे दस्तावेज़ अनिवार्य हैं। परंतु, चौधरी फिश सेंटर की फॉर्म में इनमें से कई दस्तावेज या तो अधूरे थे या फर्जी।

न्यायिक कार्रवाई की चेतावनी

प्रभावित पक्ष ने शिकायत दर्ज कराते हुए मांग की है कि इस प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए और पूरी प्रक्रिया की स्वतंत्र जांच करवाई जाए। उनका कहना है कि अन्य निविदाकारों के साथ अन्याय हुआ है और यदि प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की, तो वे न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाएंगे।

सवालों के घेरे में निविदा प्रबंधन

1. अधूरी निविदा खोलने की अनुमति किसने दी?

2. मृत व्यक्ति के दस्तावेज़ कैसे मान्य माने गए?

3. एक ही संस्था के नाम से तीन निविदाएं भरना क्या नियमों का उल्लंघन नहीं है?

4. दस्तावेज़ सत्यापन में लापरवाही क्यों बरती गई?

निष्कर्ष:

प्रशासन और जल संसाधन विभाग के लिए यह मामला एक महत्वपूर्ण परीक्षा की घड़ी है। अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह सिर्फ एक बोली प्रक्रिया नहीं, बल्कि संस्थागत पारदर्शिता पर सीधा प्रहार होगा। शिकायतकर्ता की मांग है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो, दोषियों को चिन्हित कर कार्रवाई की जाए और निविदा प्रक्रिया को दोबारा निष्पक्ष रूप से संचालित किया जाए।