
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने सोमवार को भारतीय इक्विटी में भारी खरीदारी फिर से शुरू कर दी। सप्ताहांत में संघर्ष विराम और भारत-पाकिस्तान का सीमा पर तनाव कम होने के बाद उन्होंने 1,246.5 करोड़ रुपये का निवेश किया।
स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़ों से पता चलता है कि 15 अप्रैल से पिछले गुरुवार तक लगातार 16 सत्रों में एफपीआई शुद्ध खरीदार रहे थे और भारतीय शेयरों में 49,000 करोड़ रुपये का निवेश किया था। इससे निफ्टी में करीब 10 फीसदी की उछाल आई थी। यह जून-जुलाई 2023 के बाद से उनकी सबसे लंबी खरीद का सिलसिला है।
यह निवेश अमेरिकी टैरिफ और मंदी की आशंकाओं के कारण डॉलर इंडेक्स में गिरावट के कारण आया जो 2025 के शिखर से 10 फीसदी तक लुढ़क गया। इसी कारण भारतीय रुपये में भी मजबूती आई और यह फरवरी के 88 के निचले स्तर से उबरकर इस महीने 84 रुपये के नीचे आ गया।
कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज के सह-प्रमुख संजीव प्रसाद ने एक नोट में लिखा है, हाल के हफ्तों में एफपीआई निवेश में तेज वृद्धि सक्रिय और निष्क्रिय निवेशकों के बीच भारत के प्रति सकारात्मक भावना को दर्शाती है। हम एफपीआई की स्थिति में तेज बदलाव का श्रेय पिछले एक महीने में डॉलर इंडेक्स में 2.5 फीसदी की गिरावट को देते हैं और साथ ही निवेशकों के इस विश्वास को भी वैश्विक वृद्धि की चुनौतियों के मद्देनजर भारत अपेक्षाकृत बेहतर बाजार है।
इलारा कैपिटल के ग्लोबल लिक्विडिटी ट्रैकर ने बताया कि ताइवान, ब्राजील, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे उभरते बाजारों में भी मजबूत निवेश देखा जा रहा है। भारत में पिछले सप्ताह 32.6 करोड़ डॉलर निवेश आया जबकि इससे पहले के सप्ताह में 72.4 करोड़ डॉलर आया था। यह जुलाई 2024 के बाद का सर्वोच्च आंकड़ा है। हालांकि विशेषज्ञों ने चेताया है कि अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और डॉलर की मजबूती से चलने वाले एफपीआई निवेश में उतारचढ़ाव रह सकता है। एक विदेशी ब्रोकरेज के रणनीतिकार ने कहा, विदेशी निवेश अक्सर टॉप डाउन एप्रोच से चलता है। इसमें अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और डॉलर अक्सर मुख्य चालक होते हैं। वे मूल्यांकन को ज्यादा महत्त्व नहीं देते। जोखिम से बचने की घटनाओं के दौरान वे आकर्षक मूल्यांकन पर भी बेच देते हैं और जब स्टॉक महंगा हो जाता है तो फिर से खरीद भी लेते हैं।