छतरपुर : छतरपुर जिले की 180 साल पुरानी स्मार्ट सिटी छावनी नौगांव केवल ईंट-पत्थरों से बना स्थान नहीं, बल्कि संघर्ष, योजना और सांस्कृतिक वैभव का वह दस्तावेज़ है, जिसे समय ने बड़े जतन से संभाला है. ये नगर ब्रिटिश शासन काल में बुंदेलखंड की धड़कन था. यह न केवल भारत की पहली स्मार्ट सिटी था, बल्कि इतिहास और संस्कृति का ऐसा संगम था, जिसने इस छोटे से नगर को पूरे देश में अलग पहचान दिलाई. यहां की हर गली अतीत की गवाही देती है.
180 साल पुराना इतिहास है नौगांव का
छतरपुर जिले से 25 किलोमीटर दूर बसे नौगांव की नींव 1842 में रखी गई थी. यह वह साल था, जब अंग्रेजी हुकूमत ने बुंदेलखंड की स्वतंत्रता को कुचलने और जैतपुर के महाराज और महाराजा छत्रसाल की तीसरी पीढ़ी राजा परीक्षित को हराने की योजना बनाई. अंग्रेजों ने नौगांव को अपना बेस बनाया. नौगांव के पास जैतपुर रियासत के राजा परीक्षित अंग्रेजों से लड़ते रहे. राजा परीक्षित के पास एक तोप थी, जिसका नाम नागफनी. राजा ने जैतपुर से नागफनी तोप चलाई तो अंग्रेजो की कैथा चौकी नष्ट हो गई.
तंबू वाली सिटी छावनी में हुई तब्दील
बौखलाए अंग्रेजों ने सेना बुलाई. इसके बाद महाराज परीक्षित को घेरने की रणनीति तैयार की गई. अंग्रेजों ने जैतपुर से 25 किलोमीटर दूर नौगांव को अपनी छावनी बनाया, सैनिकों के तंबुओं से शुरू हुई यह छावनी जल्द ही एक खूबसूरत नगर में बदल गई. अंग्रेजों ने इसे केवल एक सैन्य केंद्र तक सीमित नहीं रखा. उन्होंने नौगांव को योजनाबद्ध तरीके से ऐसा रूप दिया, जिसे आधुनिकता और सुविधा का प्रतीक कहा जा सके.
अंग्रेजों ने नौगांव को सलीके से संवारा
नौगांव में 192 चौराहों और आपस में जुड़ी सड़कों का जाल इस नगर की विशेष पहचान आज भी है. कभी नौगांव को मिनी चंडीगढ़ भी कहा जाता था. इतिहासकार बताते हैं "नौगांव को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना ओर नक्शा ब्रिटेन में तैयार हुआ था. अंग्रेजों के लिए बनाये गए इस नगर को बसाने के लिए देशभर से व्यापारियों, कारीगरों और अलग-अलग वर्ग के लोगों को बुलाया गया. ग्वाले दूध के लिए, दर्जी कपड़ों के लिए और व्यापारियों को सैनिकों की अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यहां बसाया गया."
36 रियासतों को ब्रिटिश शासन नौगांव से करता था कंट्रोल
36 रियासतों की राजधानी नौगांव केवल एक छावनी या स्मार्ट सिटी नहीं थी. यह ब्रिटिशकालीन बुंदेलखंड को 36 रियासतों का राजनीतिक केंद्र भी था, जिसमें पन्ना, अजयगढ़, चरखारी, दतिया और ओरछा जैसी रियासतों का प्रशासन यहीं से चलता था. रियासतों के राजाओं के ठहरने के लिए यहां 36 भव्य बंगले बनाए गए, जो उस समय को शाही संस्कृति और वैभव के प्रतीक थे. हालांकि, आज ये बंगले उपेक्षा का शिकार हैं, पर उनकी जर्जर दीवारें भी अतीत की कहानियां सुना रही हैं.