झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एके चौधरी की अदालत ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर किसी अभियुक्त को एक बार जमानत दे दिया जाता है, उसकी जमानत तब तक निरस्त नहीं की जा सकती जब तक कि वह जमानत की शर्तों का उल्लंघन न करे या निष्पक्ष सुनवाई में बाधा न डाले।
निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से हाई कोर्ट का इनकार
हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को सही मानते हुए उसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और प्रार्थी की याचिका खारिज कर दी।
जमशेदपुर सिविल कोर्ट ने दीक्षा कुमारी को एक आपराधिक मामले में आपसी समझौते के आधार पर जमानत दी थी। जिसके खिलाफ अमित कुमार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर जमानत निरस्त करने का आग्रह किया था।
जमशेदपुर कोर्ट ने दीक्षा ने 2022 में दी थी जमानत
सुनवाई के दौरान प्रार्थी अमित कुमार के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि प्रतिवादी दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते की शर्तों का पालन करने में विफल रहा है। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि समझौते की शर्तों का पालन न करना जमानत निरस्त करने का आधार नहीं बन सकता है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने जमशेदपुर कोर्ट के द्वारा दीक्षा कुमारी को दी गई जमानत को निरस्त करने से इनकार कर दिया और अमित कुमार की याचिका खारिज कर दी। जमशेदपुर कोर्ट ने दीक्षा कुमार को वर्ष 2022 में जमानत दी थी।