बाराबंकी। इलाहाबाद हाईकोर्ट से गैर जमानती वारंट के मामले में समाजवादी पार्टी के विधायक रफीक अंसारी को लखनऊ से गिरफ्तार कर लिया गया है। उनकी गिरफ्तारी के पीछे की वजह हाई कोर्ट की सख़्त टिप्पणी और 101 एनबीडब्लू नोटिस के बाद भी कोर्ट में पेश नहीं होना बताया गया है। कहा जा रहा है कि बार बार नोटिस भेजने के बाद भी सपा विधायक रफीक अंसारी पेश नहीं हो रहे थे। वे अपने सभी विभागीय कार्य कर रहे थे लेकिन कोर्ट की नोटिस का संज्ञान नहीं ले रहे थे। एसएसपी ने सीओ सिविल लाइन के नेतृत्व में उनकी गिरफ्तारी के लिए टीम गठित कर दी थी।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, एमपी- एमएलए मेरठ की अदालत से आईपीसी की धारा 147, 436 और 427 के तहत विचाराधीन आपराधिक मुकदमे में विधायक रफीक अंसारी के खिलाफ जारी वारंट को चुनौती दी गई थी। मुकदमे में सितंबर 1995 में 35-40 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 22 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। उसके बाद याची के खिलाफ एक पूरक आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया, जिस पर संबंधित अदालत ने अगस्त 1997 में संज्ञान लिया था। रफीक अंसारी अदालत में पेश नहीं हुए थे। 12 दिसंबर 1997 को गैर-जमानती वारंट जारी हो गया था। इसके बाद बार-बार 101 गैर-जमानती वारंट जारी हो गए। धारा 82 सीआरपीसी के तहत कुर्की प्रक्रिया के बावजूद रफीक अंसारी अदालत में पेश नहीं हुए और हाईकोर्ट चले गए। उनके वकील ने तर्क दिया था कि 22 आरोपियों को 15 मई 1997 के फैसले में बरी कर दिया गया। ऐसे में विधायक के खिलाफ कार्रवाई रद्द होनी चाहिए। कोर्ट ने इस मामले में डीजीपी को निर्देश दिए थे कि रफीक अंसारी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी किए गए गैर- जमानती वारंट की तामील सुनिश्चित करें।
इलाहाबाद हाई कोर्ट से रद्द हुई अर्जी
विधायक रफीक अंसारी के वकील अमित दीक्षित ने बताया था कि मेरठ में 1995 में बूचड़खाने और मीट की दुकानों को लेकर कुछ हंगामा हुआ था। उसी मामले में थाना नौचंदी में मुकदमा दर्ज किया गया था। तब उसमें रफीक का नाम नहीं था। बाद में पुलिस जांच में रफीक का नाम सामने आया और उनका नाम भी मुकदमे में शामिल किया गया। चार्जशीट आने के बाद भी रफीक अंसारी को इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई, न ही उनके साइन हुए। इसके बाद कोर्ट में प्रोसीडिंग होती रही और मामला पेंडिंग रहा।
मेरठ से सपा विधायक रफीक अंसारी लखनऊ में गिरफ्तार, 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजे गए
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