जगदलपुर। बस्तर संभाग में निवासरत दो लाख से अधिक जनसंख्या वाले धुरवा आदिवासी समाज में अब शिक्षा की अलख जगाने की ललक पैदा हो रही है। समाज ने पिछले दिनों 12वीं तक की शिक्षा अनिवार्य करने का निर्णय लिया है। संभाग के लगभग 300 गांवों में धुरवा जनजाति निवासरत है।

बस्तर, सुकमा जिले में इनकी बसाहट सबसे अधिक है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र और बस्तर और ओड़िशा के बीच बहने वाली सबरी नदी के किनारे मनकानिगरी, कोरापुट और नवरंगपुर में सबसे अधिक इस जनजाति के लोग रहते हैं।

इस समाज की शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति का जायजा लेने के लिए हमने धुरवा बस्तियों का रुख किया तो अलग-अलग दृश्य देखने को मिले। जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर स्थित 18 घरों की बस्ती टोंगपाल में बांस की टोकरी बनाते हुए बुधुराम मिले। वे कहते हैं कि उनके गांव का कोई भी बच्चा अब तक 12वीं पास नहीं कर पाया है। 50 वर्षीय बुधुराम ने खुद स्कूल का मुंह नहीं देखा। युवा दयमती ने बताया कि वह आठवीं तक पढ़कर छोड़ चुकी है। उसके दो भाई भी मिडिल तक की शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर सके हैं। नेतानार गांव पहुंचने पर एक पेड़ के नीचे आठ-दस बच्चे कंचे खेलते मिले।

तीन को छोड़कर बाकी सभी मिडिल स्तर की पढ़ाई बीच में छोड़ चुके हैं। उनका कहना था- "क्या करें सर, गरीब हैं, माता-पिता ने नहीं पढ़ाया।" धुरवा समाज के संभागीय महासचिव डा गंगाराम धुर ने कहा है कि पिछले दिनों ग्राम कोलेंग में आयोजित वार्षिकोत्सव में समाज के बच्चों के लिए 12 तक की शिक्षा अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने कार्ययोजना का खाका तैयार कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि समाज के पढ़े-लिखे जागरूक युवा टोलियां बनाकर गांव-गांव जाकर शिक्षा की अलख जगाने का काम करेंगे। अभी समाज की साक्षरता दर 35 प्रतिशत के आसपास है।

आश्रम-छात्रावासों में करेंगे बच्चों को भर्ती

समाज के सर्वेक्षण में पता चला है कि मिडिल स्कूल स्तर तक छह से 14 साल के बच्चों का ड्राप आउट चार प्रतिशत और मिडिल से हायर सेकेंडरी तक ड्राप आउट 10 प्रतिशत से अधिक है। समाज ने निर्णय लिया है कि शालात्यागी बच्चों को दोबारा स्कूलों में भर्ती कराया जाएगा। इससे 14 से अधिक आयु-वर्ग के शालात्यागी बच्चों को स्वाध्यायी माध्यम से 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण करने प्रोत्साहित किया जाएगा। उनके अभिभावकों को भी बच्चों की शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाएगा। शासन द्वारा संचालित आश्रम-छात्रावासों में बच्चों को भर्ती कराने पर पूरा जोर दिया जाएगा।

उच्च शिक्षित युवा भी सहयोग को तैयार

धुरवा समाज के वीर क्रांतिकारी और बस्तर के महान भूमकाल आंदोलन के नायक गुंडाधूर का गांव नेतानार है। यहां के रामधर नाग ने कठिन परिस्थितियों में 12वीं की पढ़ाई पूरी की और फिर डिप्लोमा किया। पढ़ाई करते हुए रात में गार्ड की ड्यूटी और दिन में क्लास अटेंड करते थे। आज वे नगरनार स्टील प्लांट में एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं।

नेतानार के रास्ते में गांव कवाली में युवा इंजीनियर कर्ण सिंह बघेल रहते है। उनके पिता लखीधर आर्थिक रूप से सक्षम थे तो उन्होंने अपने दोनों बेटों कर्ण सिंह और अजय सिंह को इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई है। कर्ण सिंह चाहते हैं कि समाज का हर बच्चा पढ़ लिखकर आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा हो। इसके लिए वे हरसंभव सहयोग करने को तैयार है।

डॉक्टर और इंजीनियर बन रहे धुरवा युवा

आर्थिक रूप से मजबूत परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं पर इनकी संख्या दो प्रतिशत से अधिक नहीं है। कर्ण सिंह, अजय सिंह जैसे एक दर्जन से अधिक युवाओं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। मावलीपदर के हर्षकुमार धुर, एमबीबीएस और उनकी बहन भावना कश्यप बीएएमएस की पढ़ाई कर रही है। समाज के आधा दर्जन अन्य बच्चे भी चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे हैं। ऐसे परिवार जिनके बच्चे पढ़-लिखकर सरकारी नौकरी में आ गए हैं या स्वयं का रोजगार स्थापित कर लिया है, उन परिवारों ने तेजी से तरक्की की है। दूसरी ओर 90 प्रतिशत से अधिक परिवार आज भी विपन्नता में जीवनयापन कर रहे हैं।

खेती और बांस की सामग्री बनाना पेशा

धुरवा जनजाति का मुख्य पेशा खेती करना और बांस के उत्पाद तैयार करना है। बांस की सामग्री तैयार कर हाट बाजार में बेचकर पैसा कमाते हैं। वनांचल में रहते हैं, इसलिए वनोपज संग्रह भी इनकी आर्थिक आय का बड़ा स्त्रोत है। प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अगाध आस्था और इनके संरक्षण को लेकर समर्पण धुरवा को विशिष्ट दर्जा देती है। धुरवा समाज के लोग तीज त्योहार व अन्य विशेष अवसरों पर सफेद रंग का कपड़ा, जिसे धुरुवा पाटा कहते हैं, पहनते हैं। सिर पर धुरवा पाटा की पगड़ी पहनते है। गले में माला धारण करते हैं। वीर गुंडाधूर इसी समाज के थे। इसलिए धुरवा को काफी सम्मान प्राप्त है।

एक दर्जन जनजातियां बस्तर में निवारत

क्षेत्रफल में केरल राज्य से भी बड़े बस्तर संभाग में 67 प्रतिशत जनसंख्या जनजातीय समुदाय की है। प्रदेश की अधिसूचित 42 जनजातीय समुदायों में एक दर्जन हल्बा, भतरा, गोंड, धुरवा, दोरला, मुरिया, माड़िया आदि बस्तर में निवासरत हैं। बस्तर के आदिवासियों की विलक्षण संस्कृति के दीदार के लिए हर साल हजारों पर्यटक यहां आते हैं और अब तो वनांचल में जाकर इनकी संस्कृति को नजदीक से देखने-समझने इनके मेहमान बनकर रहते हैं।