मिर्जापुर लोकसभा सीट से हैट्रिक की आस में उतरीं भाजपा-अपना दल (एस) की संयुक्त उम्मीदवार अनुप्रिया पटेल जातीय चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही हैं। भाजपा से टिकट कटने के बाद भदोही के मौजूदा सांसद रमेश बिंद को इस सीट से उतारकर सपा ने अनुप्रिया के विजयरथ को रोकने की भरपूर कोशिश की है। वहीं, बसपा ने अगड़ी जाति के वोटबैंक को साधने के लिए ब्राह्मण चेहरे मनीष तिवारी को उतारकर अनुप्रिया को घेरने की कोशिश की है। इसलिए माना जा रहा है कि इस बार अनुप्रिया की जीत उतनी आसान नहीं, जितनी पहले के चुनावों में थी।
भदोही से 2009 में अलग होने के बाद यह कुर्मी बहुल हो गई। इससे यहां का जातीय समीकरण अपना दल (एस) के लिए मुफीद रहा है। इसी समीकरण को देखते हुए ही भाजपा ने 2014 मेंे ही मिर्जापुर सीट को सहयोगी अपना दल (एस) के खाते में दे दिया है। 2014 व 2019 के चुनाव में मोदी-योगी के नाम पर जनता ने जातीय दीवार को दरका कर अनुप्रिया को जिताया था। पर, इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन ने बिंद जाति का उम्मीदवार उतारकर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। माना जा रहा है कि जातीय चक्रव्यूह तोड़ने के लिए अनुप्रिया पटेल को इस बार अधिक मेहनत करनी पड़ेगी।
दोनों पक्ष के उम्मीदवार अपनी-अपनी जातियों, अन्य पिछड़ा और दलित जातियों के सहारे एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में जुटे हैं। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं की वजह से तैयार हुए लाभार्थी वर्ग का बल अनुप्रिया को थोड़ा राहत दे सकता है।अब मतदान में कुछ ही दिन बचे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और विपक्ष के अधिकांश बड़े नेताओं की सभा व रोड शो हो चुके हैं। इसलिए चुनावी तस्वीर लगभग-लगभग साफ हो चुकी है। चुनावी जंग अनुप्रिया और रमेश बिंद के बीच सिमटती दिख रही है। अलबत्ता बसपा के मनीष तिवारी के अगड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की वजह से अनुप्रिया को थोड़ी चुनौती जरूर मिल रही है।
हालांकि दलित मतदाताओं का रुख अभी तक स्पष्ट नहीं दिख रहा है। अगर बसपा उन्हें साधने में कामयाब रही, तो हार-जीत का अंतर कम हो सकता है। वहीं, सपा भी आरक्षण खत्म करने और संविधान के मुद्दे पर इन्हें समझाने और रिझाने की कोशिश में जुटी है। अगर वह सफल रही तो अनुप्रिया की चुनौतियां और बढ़ जाएंगी।
राजा भैया के विरोध का भी असर
पिछले दिनों अनुप्रिया का कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के खिलाफ दिए गए बयान के बाद उनके समर्थकों की नाराजगी भी अनुप्रिया के सामने चुनौती पेश कर सकती है। इस सीट पर क्षत्रियों की भी संख्या अच्छी-खासी है। भाजपा का काडर वोटबैंक होने के नाते पिछले दो चुनावों में क्षत्रिय अनुप्रिया के साथ ही रहे हैं, लेकिन ताजा सियासी बयानबाजी के चलते उनमें थोड़ी नाराजगी दिख रही है।
इन मुद्दों पर राजग को घेरने की कोशिश
मिर्जापुर लोकसभा क्षेत्र में भी विकास का मुद्दा गरम है। सत्ता पक्ष जहां तमाम विकास के आंकड़े पेश करके जनता को समझाने की कोशिश कर रहा है, वहीं, विपक्ष कालीन, पीतल और चुनार के मशहूर पाॅटरी उद्योग के चौपट होने का मुद्दा उठा रहा है। चुनार के पाॅटरी व्यवसायी राघव प्रसाद कहते हैं, किसी भी राजनीतिक दल और नेता ने यहां के समुचित विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। छोटे-मोटे उद्योग जो थे भी, वे आज बंद होने की कगार पर हैं। राम सकल प्रजापति कहते हैं, इसके लिए अनुप्रिया पटेल ने कई बार कोशिशें तो कीं, पर रंग नहीं ला सकीं। हाईवे को छोड़ दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों की हालत खस्ता है।
शिक्षा के क्षेत्र में काम दे रहा संजीवनी
लोकसभा क्षेत्र में विपक्ष भले ही विकास नहीं होने के मुद्दे को गरमा रहा हो, लेकिन सत्ता पक्ष के शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कई कार्यों की चर्चा आमजन में है। मिर्जापुर सदर के शिक्षक त्रिभुवन सिंह का कहना है कि पहली बार जिले में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज और केंद्रीय विद्यालय शुरू हुए। मड़िहान क्षेत्र के ददरी के रहने वाले राम किशोर बिंद का कहना है कि योगी सरकार की वजह से जिले में विश्वविद्यालय बनने जा रहा है। इसका सभी को फायदा मिलेगा।
दस्यु सुंदरी फूलन देवी और ददुआ का भाई भी जीता यहां से
इस सीट के मिजाज की बात करें तो यहां दो बार दस्यु सुंदरी फूलन देवी जीत चुकी हैं। वह दोनों बार सपा से जीतीं। दस्यु ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल भी एक बार चुनाव जीते। 1952 से लेकर अब तक यहां पर सात बार कांग्रेस, चार बार सपा जीती। वहीं बसपा, भाजपा व अपना दल (एस) ने दो-दो बार, भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी और जनता दल ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।
जिले की सभी विधानसभा सीटों पर है एनडीए का कब्जा
लोकसभा क्षेत्र की सभी पांचों विधानसभा सीटों पर एनडीए का कब्जा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में मिर्जापुर सदर, चुनार और मड़िहान में भगवा परचम फहराया। वहीं, मझवां से निषाद पार्टी और छानबे (सुरक्षित) सीट अपना दल (एस) के खाते में है। इसलिए चुनावी समीकरण को अपने पक्ष में करने के लिए अपना दल (एस) को कम और सपा को अधिक मेहनत करनी पड़ रही है।
2.32 लाख के अंतर से जीती थीं अनुप्रिया
अनुप्रिया पटेल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 53.34 फीसदी वोट शेयर हासिल कर अनुपि्रया 2,32,008 वोटों के अंतर से जीती थीं। अनुप्रिया को 5,91,564 वोट मिले थे, तो सपा के रामचरित्र निषाद को 3,59,556 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के ललितेश पति त्रिपाठी को महज 91,501 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था।
विकास के दावे पर भी सवाल
केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के भरोसे मैदान में उतरीं अनुप्रिया के विकास के दावे पर भी सवाल उठ रहे हैं। हलिया विकास खंड में सड़क और पेयजल की समस्या बरकरार है। हलिया के कामेश्वर, सुदर्शन, कौशलेंद्र का कहना है कि जो काम जन प्रतिनिधि नहीं कर सके, उसे तत्कालीन जिलाधिकारी दिव्या मित्तल ने कर दिखाया। पहली बार लहुरिया दह में लोगों को नल से जल मिला। कौशलेंद का आरोप है कि इसका फीता काटने का मौका नहीं मिलने पर रंजिशन जिलाधिकारी को हटवाकर वेटिंग में डलवा दिया गया। इतना ही नहीं, पेयजल की आपूर्ति करने वाली पाइपलाइन को ही तोड़ दिया गया। इस सबसे जनता के अरमानों पर मिट्टी डालने का काम किया गया, जिसे लोग भूले नहीं हैं।