जौनपुर: सिंगरामऊ के राजा श्रीपाल सिंह राजनीतिक क्षितिज के उदीयमान नक्षत्र थे। अपने पराक्रम, रणनीतिक कौशल के चलते एक ही पार्टी की राजनीति कर प्रदेश व देश में अलग मुकाम हासिल किए। स्वाभिमान ऐसा था कि राजा होने की वजह से कभी मंत्री पद स्वीकार नहीं किया, नहीं तो ओहदे में कमी हो जाती।

कल तक जहां चुनावी सियासत की बिसात बिछती थी, आज वहीं उनकी चौथी पीढ़ी के कुंवर मृगेंद्र सिंह खानदानी पार्टी का झंडा बुलंद किए हुए हैं। यहां बात हो रही है तीन बार के विधायक व सिंगरामऊ स्टेट के राजा रहे राजर्षि कुंवर श्रीपाल सिंह की। जिले में पहले चेयरमैन उनके पिता राजा हरपाल सिंह थे। राजर्षि कुंवर श्रीपाल सिंह राजनीतिक सफर में खुटहन विधानसभा से निर्दल चुनाव जीत कर पूर्व मंत्री लक्ष्मीशंकर यादव को हराया था।

 नेहरू से खास नाता

हालांकि राजर्षि आज हम सबके बीच नहीं हैं, लेकिन समय-समय पर उनकी याद आना स्वाभाविक है। आजादी की लड़ाई के बाद से आज तक इनका बहुत बड़ा इतिहास रहा है। पिता की मृत्यु के पश्चात 1939 में सिंगरामऊ स्टेट के राजा बने। राजा बनने के बाद 1940 में राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। वह तीन बार विधायक रहे। राजनीतिक रूप से हमेशा विपक्ष में रहे, लेकिन नेहरू परिवार से घनिष्ठता व मित्रवत व्यवहार भी रहा। स्वतंत्रता के बाद से राजनीतिक जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

कांग्रेस की लहर में खाई मात 

वर्ष 1957 में खुटहन विधानसभा से वे निर्दलीय विधायक बने। 1962 में जनसंघ से सुल्तानपुर की चांदा विधानसभा एवं 1967 में रारी से विधानसभा से विधायक बनकर इतिहास रचा। 1974 में हुए संसदीय चुनाव में आजमगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस की लहर में हार का सामना करना पड़ा।

उसके बाद राजनीति से मोह भंग हुआ तो वानप्रस्थ आश्रम में रहकर क्षत्रियों की एकजुटता के लिए संघर्ष किया। बाद में सक्रिय राजनीति में तो नहीं लौटे, लेकिन सियासी सफर से राजा की कोठी व गौरीशंकर मंदिर हमेशा गुंजायमान रहा करता था। यहां प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा अन्य राजनीतिक लोग हमेशा आते जाते थे।