श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने  कच्चातिवु द्वीप को लेकर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि भारत के साथ कच्चातिवु द्वीप को लेकर चर्चा करने का कोई कारण उन्हें नहीं दिख रहा। साबरी ने बताया कि कई साल पहले दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद ही इस मामले पर चर्चा खत्म हो गई थी। श्रीलंका के विदेश मंत्री ने कहा कि एक जिम्मेदार पड़ोसी राष्ट्र होने के नाते श्रीलंका किसी को भी भारत की सुरक्षा से समझौता करने की अनुमति नहीं देगा। 

कच्चातिवु द्वीप पर श्रीलंका के विदेश मंत्री ने दी प्रतिक्रिया
कच्चातिवु द्वीप को लेकर श्रीलंकाई विदेश मंत्री ने मीडिया से बात की। उन्होंने कहा, "अगर आप इसे ध्यान से देखे, तो ये वे मुद्दे हैं, जिन पर हमने वर्षों पहले ही चर्चा कर निष्कर्ष निकाल चुके हैं। मुझे इसे दोबारा शुरू करने की आवश्यकता नहीं दिखती है।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कच्चातिवु द्वीप पर टिप्पणी का मतलब इस चर्चा को फिर से शुरू करना नहीं है।

साबरी ने आगे कहा, "वहां घरेलू राजनीतिक जरूरतों के आधार पर यह पता लगाने की कोशिश जारी है कि उस समय विचार-विमर्श ठीक से किया गया था या नहीं।" श्रीलंका में चीनी जासूसी जहाजों के आगमन पर साबरी ने कहा, "हमने बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि हम सभी देशों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं।"

कच्चातिवु द्वीप पर प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को घेरा था
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कच्चातिवु द्वीप को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता है। पीएम मोदी ने कहा, "तमिलनाडु के नीचे एक द्वीप था, लेकिन इसे कांग्रेस ने श्रीलंका को दे दिया। अब जब हमारे मछुआरे उस क्षेत्र में जाते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। क्या कांग्रेस कभी भी हमारी जमीन की रक्षा कर सकती है?" 

 


क्या है कच्चातिवु द्वीप का इतिहास
बता दें कि कच्चातिवु द्वीप रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच स्थित है। इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से भारत और श्रीलंका के मछुआरे करते थे। साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने समकक्ष श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इन्हीं समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया।  तमिलनाडु की तमाम सरकारें 1974 के समझौते को मानने से इनकार करती रहीं और श्रीलंका से द्वीप को दोबारा प्राप्त करने की मांग उठाती रहीं। 1991 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा समझौते के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया जिसके जरिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग की गई थी। 2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और कच्चातिवु समझौतों को रद्द करने की अपील की। उन्होंने कहा था कि श्रीलंका को कच्चातिवु उपहार में देने वाले देशों के बीच दो संधियां असंवैधानिक हैं। इसके अलावा साल 2011 में जयललिता ने एक बार फिर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया। 
मई 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी की मौजूदगी में एक समारोह में मांग की थी कि कच्चातिवु द्वीप को भारत में पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार अप्रभावित रहें, इसलिए इस संबंध में कार्रवाई करने का यह सही समय है।