सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण को लेकर एक अहम निर्णय दिया है। शीर्ष अदालत ने कोलकाता नगर निगम की याचिका खारिज करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को संपत्ति के अधिकार से वंचित करने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया तो निजी संपत्तियों का अनिवार्य अधिग्रहण असंवैधानिक होगा। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अगर राज्य और उसके उपकरणों द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता तो निजी संपत्तियों के अधिग्रहण के बदले मुआवजे के भुगतान की वैधानिक योजना भी उचित नहीं होगी। इसके साथ ही अदालत ने कोलकाता नगर निगम की याचिका खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने निगम पर पांच लाख का जुर्माना भी किया है।
गौरतलब है कि नगर निगम ने कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक पार्क के निर्माण के लिए शहर के नारकेलडांगा नॉर्थ रोड पर एक संपत्ति के अधिग्रहण को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि नागरिक निकाय के पास अनिवार्य अधिग्रहण के लिए एक विशिष्ट प्रावधान के तहत कोई शक्ति नहीं थी।
32 पन्नों के फैसले में न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 300ए के तहत भूमि मालिक को प्रक्रियात्मक अधिकार प्रदान किए जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति को यह सूचित करना राज्य का कर्तव्य है कि वह उसकी संपत्ति अर्जित करना चाहता है। अधिग्रहण पर आपत्तियों को सुनना राज्य का कर्तव्य है।
पीठ ने आगे कहा कि अधिग्रहण के अपने निर्णय के बारे में व्यक्ति को सूचित करना राज्य का कर्तव्य है। साथ ही राज्य का कर्तव्य है कि वह यह बताए कि अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के लिए है। भूमि मालिक उचित मुआवजे का भी अधिकार रखता है। अधिग्रहण की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक और कार्यवाही की निर्धारित समय सीमा के भीतर संचालित करने का राज्य का कर्तव्य है। साथ ही कार्यवाही का अंतिम निष्कर्ष भी बताया जाना चाहिए।