प्रदेश शासन के अधीन और उसी के अनुदान पर संचालित मसाजिद कमेटी इन दिनों उद्दंडता के साथ सुर्खियों में है। हाई कोर्ट का एक आदेश रिसीव कराने पहुंचे भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व मंत्री को कमेटी सचिव ने उल्टे पैर लौटा दिया। हद यह भी हुई कि उक्त नेता ने खुद को विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर का समर्थक होना बताया तो सेक्रेट्री और ज्यादा भड़क गए। तोमर को बुरा भला कहने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। उनका कहना है कि वे मसाजिद कमेटी के सचिव हैं। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग उनका मूल विभाग है। जो करेंगे अपने विभाग के आदेश पर करेंगे, इसके अलावा किसी नेता को न तो वे जानते हैं और न किसी का आदेश मानने के लिए बाध्य हैं।
मामला गुरुवार को उस समय देखने को मिला, जब मसाजिद के पूर्व सचिव यासिर अराफात उनके पक्ष में आए हाईकोर्ट के एक फैसले की प्रति लेकर कमेटी दफ्तर पहुंचे। इस दौरान उनके साथ मौजूद भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व मंत्री मोहम्मद नासिर ने आवक शाखा में जाकर यह प्रति सौंपी। शाखा प्रभारी ने इसको जमा करने के लिए सचिव के अनुमोदन की अनिवार्यता लगा दी। नासिर अनुमोदन कराने कमेटी के प्रभारी सचिव सैयद उवैस अली के पास पहुंचे। सचिव द्वारा परिचय पूछे जाने पर नासिर ने खुद को विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर का समर्थक बताया। नासिर की बात सुनकर उवैस अली भड़क गए और नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर कई भाजपा नेताओं के लिए उन्होंने बदबोल निकालना शुरू कर दिए। इस बात से नाराज नासिर ने तोमर के खिलाफ अपशब्द कहने से उवैस को रोका भी, लेकिन प्रभारी सचिव ने साफ कर दिया कि वे अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अलावा किसी नेता को नहीं जानते। यह कहते हुए उन्होंने अदालत का आदेश रिसीव करने से भी इंकार कर दिया।
लगातार अवमानना
मसाजिद कमेटी द्वारा हाल ही में लगातार दो बार अदालत के आदेश की अवहेलना के हालात बना दिए गए हैं। पहला मामला करीब एक माह पहले उस समय हुआ था, जब नियम विरुद्ध पद से हटाए जाने पर पूर्व सचिव यासिर अराफात ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने अपने पुराने आदेश का हवाला देते हुए यासिर को पद पर बरकरार रहने के आदेश दिए थे। यासिर जब अपने वकील के साथ यह आदेश पहुंचाने मसाजिद कमेटी पहुंचे तो मौजूदा सचिव सैयद उवैस अली ने अदालत का यह आदेश ग्रहण करने से इंकार कर दिया था। इसके बाद अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने यासिर अराफात को पद से निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए। जिसके खिलाफ यासिर ने फिर अदालत की शरण ली। न्यायालय ने यासिर के निलंबन को अनुचित ठहराते हुए उन्हें पद पर बने रहने के आदेश दो दिन पहले दिए हैं। इसी आदेश को देने वे मसाजिद कमेटी पहुंचे थे। जिसे लेने से दोबारा इनकार करते हुए अदालत की अवमानना के हालात बना दिए गए हैं।
मामला एक नजर में
शासकीय संस्था मसाजिद कमेटी के कुछ उलेमा और कर्मचारियों ने विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के समर्थन में प्रचार किया। तत्कालीन सचिव यासिर अराफात ने इनमे से कुछ लोगों को पद हटा दिया और कुछ को नोटिस जारी किए। मामले में सियासी दखल शुरू हुआ। एक मुस्लिम संस्था के पदाधिकारी और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष ने यासिर को कार्यवाही रोकने का दबाव बनाया। यासिर द्वारा नेताओं की बात न मानने पर उनके खिलाफ कूटनीतिक शिकायतें की गईं। जिस पर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने यासिर को पद से हटाकर उनके स्थान पर सैयद उवैस अली को प्रभारी सचिव बना दिया। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग यासिर अराफात को हटाने का फैसला इसलिए नहीं ले सकता था, क्योंकि यासिर इस मामले में वर्ष 2020 से अदालत के स्थगन पर बने हुए हैं। इसके चलते अदालत ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव, सहायक सचिव और मसाजिद कमेटी सचिव को नोटिस जारी किया है।
इनका कहना है
मसाजिद कमेटी के प्रभारी सचिव सैयद उवैस अली का कहना है कि मैंने या ऑफिस के किसी कर्मचारी ने किसी को भी अपशब्द नहीं कहे हैं। मसाजिद कमेटी में तो कुछ कर्मचारी ऐसे भी हैं, जो नरेंद्र सिंह तोमर जी के नाम से भी वाकिफ नहीं हैं। उन्हें गाली कैसे दे सकते हैं। यह लोग ही अपने साथ भीड़ लेकर आए थे।