भोपाल । मप्र की 6 लोकसभा सीटों पर नामांकन शुरू हो गया है। भाजपा सभी 29 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर मैदान में उतर गई है। वहीं कांग्रेस अभी भी 10 सीटों पर ही अटकी हुई है। करीब 4 बार प्रत्याशी घोषित करने की तिथि आगे बढ़ गई है। सूत्रों का कहना है कि जीत के कम चांस और गुटबाजी के कारण कोई भी बड़ा नेता चुनाव लडऩे को तैयार नहीं है। इस कारण कांग्रेस अपने शेष प्रत्याशियों की घोषणा नहीं कर पा रही है। मंगलवार को सीईसी की बैठक में मध्य प्रदेश की बाकी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों के नामों के एलान की संभावना जताई जा रही थी, लेकिन उस पर चर्चा होने से पहले ही बैठक खत्म हो गई। कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में 15 सीटों पर सिंगल नाम पर सहमति बन गई है। तीनों सीटों पर अभी भी पेच फंसा है। इसमें गुना, बालाघाट और जबलपुर लोकसभा सीटें हैं। गुना में वीरेंद्र रघुवंशी और यादवेंद्र सिंह के नाम की चर्चा चल रही थी, लेकिन यहां से जयवर्धन सिंह को चुनाव लड़ाने को लेकर मामला फंस गया है। इसी तरह बालाघाट सीट पर पूर्व सांसद कंकर मुंजारे और पूर्व विधायक हीना कांवरे को लड़ाने को लेकर असमंजस की स्थिति है। इसके अलावा जबलपुर में विधायक लखन घनघोरिया ने नए चेहरे को लड़ाने की बात कर दी है। इसके चलते इस सीट पर भी मामला उलझ गया है।
राहुल गांधी मध्य प्रदेश में दिग्गजों को चुनाव लडऩे की बात कर चुके हैं। अब नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी खुद के साथ ही सभी दिग्गजों को चुनाव लडऩे का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने स्क्रीनिंग कमेटी के सामने अनौपचारिक बातचीत में जीतू पटवारी को इंदौर, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को गुना, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को सतना, जयवर्धन सिंह को राजगढ़ और उन्होंने खुद को भी धार से प्रत्याशी बनाने का सुझाव रखा है। जबकि दिग्गज लोकसभा चुनाव लडऩे से इंकार कर चुके हैं। ऐसे में अब सीईसी की बैठक में ही साफ हो पाएगा कि दिग्गज चुनाव लड़ते हैं या नहीं।
दावे बड़े-बड़े, तैयार कोई नहीं
मप्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव में जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन जब चुनाव लडऩे की बात आती है तो वे मुकर जा रहे हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर कांग्रेस के दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लडऩे से मना क्यों कर रहे हैं, क्या कांग्रेस के नेता मान चुके हैं कि मोदी की जीत पक्की है और कांग्रेस का जीतना संभव नहीं? क्या कांग्रेस के दिग्गज हारी हुई बाजी पर दांव नहीं लगाना चाहते हैं या फिर पार्टी के अंदर गुटबाजी के चलते खुद के निपटने का डर है। ऐसे सवालों के पीछे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की वो इच्छा है, जिसमें उन्होंने चुनाव नहीं लडऩे की बात आलाकमान को बताई हैं। बीते दिन कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहन गुप्ता ने टिकट मिलने के बाद चुनाव नहीं लडऩे का ऐलान किया, यानी टिकट वापस कर दिया। कांग्रेस का कोई नेता टिकट लौटा रहा है तो कोई चुनाव नहीं लडऩे का ऐलान कर चुका है। जहां एक ओर राहुल गांधी कांग्रेस की गारंटी को लेकर दम भर रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी के सिपाहियों की कोई गारंटी लेने वाला नहीं, टिकट मिलने के बाद चुनाव लडेंगे या नहीं। इतिहास में पहली बार कांग्रेस पार्टी इतनी उहापोह की स्थिति में फंसी नजर आ रही है। एक तरफ पार्टी छोडऩे वालों का तांता और दूसरी तरफ प्रत्याशियों के चयन की दुविधा।
एक दूसरे को पावरफुल बता रहे
दो तरफा उलझे पेंच में कांग्रेस के बड़े नेता खुद तो टिकट से कन्नी काट रहे हैं और दूसरे नेताओं को मजबूत बताते हुए उनके टिकट की पैरवी करते नजर आ रहे है। बड़े नेताओं के इसी रवैये के कारण टिकटों को लेकर संशय बना हुआ है, वहीं रोज की तरह प्रत्याशी के नाम पर अफवाहें भी उड़ती रहीं। बहरहाल हालात बता रहे हैं कि मालवा निमाड़ में शेष पांच सीटों पर पसीने छूट रहे हैं। यहीं कारण है कि सूबे से सभी बड़े नेता एक दूसरे को पावरफुल बता रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी पर इंदौर सीट से चुनाव लडऩे का दबाव है ऐसे में उन्होंने पूर्व विधायक सत्यनारायण पटेल को श्रेष्ठ प्रत्याशी बताते हुए टिकट की पैरवी शुरू कर दी। इंदौर जैसी जटिल सीट पर हर तरफ से पड़ रहे दबाव के चलते पटवारी ने पटेल का नाम चला दिया। एआईसीसी के सचिव पटेल ज्यादा होशियार निकले और उन्होंने पटवारी को बड़ा नेता बताते हुए इंदौर से सबसे बेहतर उम्मीदवार बता दिया। उन्होंने सीडब्ल्यूसी और स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों से व्यक्तिगत मिलकर यह बात कही और मीडिया में भी सार्वजनिक रूप से पटवारी को सबसे मजबूत उम्मीदवार बता दिया। तमाम दबाव और पार्टी में चल रही भगदड़ के बीच पटवारी खासे दबाव में आते जा रहे है। बड़े नेताओं के पीछे हटने के कारण अब विकल्प के रूप में अक्षय कांति बम भी टिकट के मजबूत दावेदार बन चुके हैं। खंडवा लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस मजबूत नाम की तलाश में जुटी है। इस सीट पर पूर्व सांसद अरुण यादव पर चुनाव लडऩे का दबाव है। यादव का मन खंडवा सीट से लडऩे का बिल्कुल नहीं है। चुनाव लडऩे की अनिच्छा के बीच उन्होंने गुना से टिकट की मांग कर दी। कारण साफ है कि परिणाम अनुकूल ना आए तो भी सिंधिया से मुकाबला करने पर कद तो पार्टी में ऊंचा ही रहेगा। यादव के इंकार करने की दशा में कांग्रेस के पास सुरेंद्र सिंह शेरा और झूमा सोलंकी ही मजबूत विकल्प बचते हैं। मंदसौर में कांग्रेस की स्थिति इंदौर के समान विकट हो गई है। इस सीट से सांसद चुनी गई टीम राहुल की सदस्य मीनाक्षी नटराजन पर चुनाव लडऩे का दबाव था। मीनाक्षी ने चुनाव से साफ इंकार कर दिया। विकल्प के रूप में सोमिल नाहटा का नाम आया तो उन्होंने भी इंकार कर दिया। एक नाम महेंद्र सिंह गुर्जर का भी है। दो विधानसभा चुनाव हार चुके गुर्जर के नाम को पार्टी गभीर नहीं मान रहीं। मजबूरी के हालात में मंदसौर सीट से विधायक विपिन जैन के अलावा कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं। रतलाम झाबुआ सीट से कांग्रेस को कुछ बेहतर परिणाम की उम्मीद है। पिछला चुनाव हार चुके कातिलाल भूरिया अधी-अधूरी इच्छा से मैदान में है। उधर पार्टी भी उनके नाम पर इच्छा अधी-अधूरी ही है। सैलाना से विधायक रहे हर्ष विजय मेहलीत इस सीट से कांग्रेस का चेहरा हो सकते है। गेहलोत के पिता प्रभुदयाल गेहलोत सात बार विधायक रहे है और उनके नाम या प्रभाव अंचल में अभी भी कायम है। उज्जैन में भी कांग्रेस के पास विधायक महेश परमार के अलावा कोई मजबूत चेहरा नहीं है। परमार तराना सीट से विधायक है। महापौर का चुनाव भी उन्होंने लड़ा था जो बहुत कम अतर से वे हारे थे। बात विकल्प की करें तो रामलाल मालवीय का नाम भी चर्चा में है। इन दोनों के अलावा पार्टी के फस ऐसख कोई नाम नहीं है जो मौजूदा हालात में भाजपा को टक्कर दे सके। बात चुनावी समर की करें तो भाजपा ने केवल अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए बल्कि चुनावी रणनीति भी बनना शुरू हो गई।
जीत के कम चांस और गुटबाजी बनी टेंशन...
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