धार । धार भोजशाला एक बार फिर चर्चा में है। कई वर्षों से भोजशाला को लेकर विवाद है। उस पर हिन्दू और मुस्लिम अपना हक जताते है। हिन्दू पक्ष का कहना है कि यहां सरस्वती मंदिर है, जबकि मुस्लिम पक्ष भोजशाला को इबादतगाह बताता है। भोजशाला का सच क्या हैै। यह जानने के लिए आर्कियोलाॅजिक्ल सर्वे आफ इंडिया का दल धार पहुंच गया है। हाईकोर्ट के निर्देश पर भोजशाला के सर्वे के लिए शुक्रवार से खुदाई शुरू होगी। भोजशाला मामले में इंदौर में लगी याचिका पर सुनवाई के बाद फरवरी माह में सर्वे के आदेश दिए थे। विशेषज्ञों की टीम खुदाई कर यह देखेगी कि भोजशाला का जब निर्माण हुआ था, तब उसकी बनावट किस शैली की है और पत्थरों पर किस तरह के चिन्ह अंकित है। टीम अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपेगी। जिसके आधार पर सुनवाई आगे बढ़ेगी।
भोजशाला में भारतीय वास्तुकला और हिन्दू चिन्ह
आर्कियोलाॅजिक्ल सर्वे आफ इंडिया ने भी 1902 में भी सर्वे हुआ था। उस सर्वे की जानकारी अफसरों ने कोर्ट के समक्ष रखी। पूर्व में हुए सर्वे में पाया गया था कि भोजशाला की वास्तुकला भारतीय शैली की है। भोजशाला में हिंदू चिन्ह, संस्कृत के शब्द आदि पाए गए है।विष्णु प्रतिमा भी है। उसके प्रमाण याचिकाकर्ता ने कोर्ट में पेश किए है। याचिका में कहा गया है कि भोजशाला में हिंदू समाज को नियमित पूजा का अधिकार है। वहां मुस्लिम समाज नमाज पढ़ता है। नमाज पढ़ने पर रोक लगाना चाहिए,क्योकि वहां हिन्दू मंदिर है।
राजाभोज ने बनाया था सरस्वती सदन
भोजशाला का इतिहास एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। हिन्दू संगठनों के अनुसार भोजशाला धार के राजा भोज ने बनाई थी। सरस्वती सदन के रुप में भोजशाला शिक्षा का बड़ा केंद्र थी। राजवंश काल में यहां सूफी संत कमाल मौलाना की दरगाह बन गई। मुस्लिम समाज यहां नमाज पढ़ने लगा।
इसके बाद यह दावा किया जाने लगा कि धार में भोजशाला नहीं, बल्कि दरगाह है। अंग्रेजों के शासनकाल में भी भोजशाला को लेकर विवाद उठा था। तब वर्ष 1902 में लाॅर्ड कर्जन धार, मांडू के दौरे पर आए थे। उन्होंने भोजशाला के रखरखाव के लिए 50 हजार रुपये खर्च करने की मंजूरी दी थी। तब सर्वे भी किया गया था। 1951 को धार भोजशाला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। तब हुए नोटिफिकेशन में भोजशाला और कमाल मौला की मस्जिद का उल्लेख है।