कटनी । कटनी से आठ किलोमीटर दूर स्थित पीरबाबा दरगाह जो हिंदू-मुस्लिम सद्भावना की मिसाल बनी हुई है। यहां हर साल उर्स भरता है, शामिल होने हजारों की संख्या में देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। इस दरगाह का इतिहास करीब 150 वर्ष पुराना है। दरगाह के गद्दी नशीन सैयद फहीम असरत बताते हैं कि यहां से पहले सड़क निकलने वाली थी, लेकिन लाख कोशिश के बाद भी काम नहीं हो पा रहा है। फिर यहां इत्र का बारिश हुई। इसके बाद इस दरगाह का नाम हजरत इत्रशाह दाता चिश्ती रज पीरबाबा के नाम से मशहूर हुआ। तब से यहां सभी धर्म के लोगों की श्रद्धा बढ़ गई। अपनी मन्नत लेकर बाबा की दरबार में आते हैं और पूरी होने पर फूल की चादर चढ़ाते हैं।
इंदौर से आया और कबूल हुई दुआ
इंदौर से आए मोहम्मद रमजान ने बताया कि कटनी के पीरबाबा दरगाह से उन्होंने दुआ मांगी थी। उन्होंने कहा कि मेरे रिश्तेदार बाबा जी की विशेषता बताते थे। इसी के चलते मैं अपनी समस्या लेकर उनके दर पर हाजिरी लगाने पहुंचा था जो कबूल हो गई। तब से मैं हर साल इस उर्स में शामिल होने इंदौर से कटनी आता हूं।
हिंदू भी पहुंचते हैं दरगाह
जबलपुर से आई राजिया कुरैशी ने बताया कि वह अपने शौहर के साथ आई है। उन्होंने एक मन्नत मांगी थी, जो कबूल हुई। इसके बाद से यहां बीच-बीच में हाजिरी लगा देती हैं। यहां सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में हिंदू भी हाजिरी लगाते हैं। मुन्ना माली और आशु केसरवानी बताते हैं कि बाबा सबकी मुराद पूरी करते हैं। यहां की देखरेख का जिम्मा उर्स कमेटी के अध्यक्ष तनवीर खान उर्फ तन्नू पर रहता है।
पीर बाबा की दुआ से कम हो गई दुर्घटनाएं
सुशील कुमार धुरिया बताते हैं कि इस सड़क पर पहले बहुत सड़क हादसे हुआ करते थे। फिर वाहन चालकों सहित स्थानीय लोगों ने पीरबाबा दरगाह में मन्नतें की तब से दुर्घटनाएं होना खत्म हो गई है। बड़ी बात ये है हजरत इत्रशाह दाता चिश्ती की दरगाह के समाने ही भगवान श्रीराम के साथ वीर बजरंगबली का मंदिर है। यही खासियत है कि जो मंदिर में माथा टेकता है वो दरगाह में भी हाजिरी लगता है। इसी के चलते लोग उर्स को कौमी एकता के रूप में देखते हैं। कटनी के अजरूद्दीन उर्फ अज्जू भाई और हाजी अब्दुल कादिर ने बताया कि पीरबाबा उर्स का कार्यक्रम पांच दिन का है। पूरे देश के प्रसिद्ध चार से अधिक कव्वाल यहां आए हैं।