बेंगलुरू: भ्रष्टाचार के 18 वर्ष पुराने एक मामले में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता शनिवार को दोषी करार दी गईं और उन्हें चार वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई। इस मामले में फैसले से उन्हें पद छोड़ना पड़ेगा, साथ ही वह विधायक के रूप में तत्काल आयोग्य हो जायेंगी जिसका प्रभाव 18 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है।

चूंकि जयललिता को तीन वर्ष से अधिक अवधि की सजा सुनाई गई है, ऐसे में मुख्यमंत्री को जेल ले जाया गया और वह केवल कर्नाटक उच्च न्यायालय से ही जमानत के लिए आवेदन कर सकती हैं। मामले की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश जान माइकल डी कुन्हा ने 66 वर्षीया अन्नाद्रमुक सुप्रीमो पर 100 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया जो अब तब किसी भी राजनीतिक पर लगाया गया सर्वाधिक जुर्माना है।

विशेष न्यायाधीश जान माइकल डी कुन्हा ने जयललिता के खिलाफ 66.65 करोड़ रुपए के आय से अधिक सम्पत्ति के मामले की सुनवाई की जो जयललिता ने 1991 से 1996 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान अर्जित की। जयललिता को इस मामले में पराप्पना अग्रहारा के पास उच्च सुरक्षा वाले अदालत परिसर में दोषी करार दिया गया। जब सजा सुनायी जा रही थी तब परिसर के बाहर अन्नाद्रमुक समर्थक द्रमुक नेता करुणानिधि और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का पुतला जला रहे थे जिन्होंने इस मामले को प्रारंभ में उठाया था।

जयललिता को दोषी ठहराने के बाद तमिलनाडु में हिंसक घटनाएं देखने को मिली है जहां सार्वजनिक वाहनों को निशाना बनाया गया और दुकानें बंद रहीं। सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय ने इस मामले में आरोपपत्र दायर किया था और इस मामले को 2003 में इस अदालत में स्थानानंतरित किया गया था।

अदालत ने इस मामले में तीन अन्य लोगों जयललिता की करीबी मित्र शशिकला, शशिकाल की रिश्तेदार इलावारसी और मुख्यमंत्री के परित्यक्त दत्तक पुत्र सुधाकरण को भी दोषी ठहराते हुए चार साल कारावास की सजा सुनायी। विशेष लोक अभियोजक भवानी सिंह ने कहा कि इस मामले में दोषी ठहराये गए तीन अन्य लोगों पर 10.10 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है।

चारों उच्च न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। पिछले वर्ष जुलाई के उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार, किसी अपराध के मामले में दोषी करार दिये जाने के संबंध में दो वर्ष से अधिक कारावास की सजा सुनाए जाने पर किसी सांसद या विधायक को दोषी करार दिये जाने की तिथि से जनप्रतिनिधि के रूप में आयोग्य ठहराया जायेगा।

जब तक कि दोषी करार दिये जाने पर किसी उच्च अदालत से रोक नहीं लगे या उसे पलटा न जाए, तब तक जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत वह 10 वर्ष तक चुनाव लड़ने के अयोग्य रहेंगी। जो दोषी करार दिये जाने के बाद चार साल की अवधि की सजा और उसके बाद छह साल की अवधि तक होगा। जयललिता को 2001 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।

आज के अदालत के फैसले के बाद से ही यह कयास लगाये जाने लगे हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता का स्थान कौन लेगा। इस संबंध में वरिष्ठ मंत्री ओ पनीरसेल्वल का नाम भी लिया जा रहा है जो 2001 में जयललिता के इस्तीफा देने और उनके लौटने तक इस पद पर रहे थे। इसके अलावा परिवहन मंत्री वी सेंथिल बालाजी, बिजली मंत्री आर विश्वनाथन और यहां तक कि पूर्व मुख्य सचिव शील बालकृष्ण के नाम पर भी चर्चा है।