जबलपुर । मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अभियुक्त का कानूनी बहुमूल्य अधिकारी है कि गवाहों का परीक्षण उसके सामने हो। हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल ने सीआरपीसी की धारा 273 का पालन न होने के कारण जिला न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया। प्रकरण दस साल पुराना होने के कारण एकलपीठ ने सजा से दंडित आरोपी को दोषमुक्त करने के आदेश जारी किए हैं।अपीलकर्ता संतोष उर्फ टाना की तरफ से दायर की गई अपील में कहा गया था कि एक युवती ने उसके तथा दो अन्य व्यक्तियों के खिलाफ दिसंबर 2013 को सारणी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। युवती का आरोप था कि वह अपने मंगेतर के साथ पहाड़ी में घूमने आई थी। इस दौरान उन्होंने उसके साथ छेड़खानी की और बेल्ट तथा डंडे से दोनों के साथ मारपीट की। बैतूल न्यायालय ने उसे अगस्त 2019 में धारा 354 के तहत एक साल तथा धारा 323 के तहत 6 माह तथा जुर्माने की सजा से दंडित किया गया था। इसके खिलाफ उक्त अपील दायर की गई थी।
याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया था कि शिकायतकर्ता तथा उसके मंगेतर ने अपने बयान में कहा था कि वह आरोपियों को पहचानते नहीं हैं। घटना की जानकारी उन्होंने भाभी को दी थी और कद-काठी के आधार पर उन्होंने आरोपियों का नाम पुलिस को बताया था। अपीलकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि न्यायालय ने उसकी अनुपस्थिति में गवाहों के बयान दर्ज किए थे। एकलपीठ ने जिला न्यायालय की ऑर्डर शीट में पाया कि आरोपी की अनुपस्थिति में गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं। उसकी अनुपस्थिति में गवाहों के बयान दर्ज करवाने का अधिकार भी आरोपी ने अपने अधिवक्ता को नहीं दिया था। सुनवाई के बाद एकलपीठ ने उक्त आदेश जारी करते हुए जिला न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया।