भोपाल ।  जनजातीय परंपरा को आमजन तक पहुंचाने वाला देश का प्रथम जनजातीय संग्रहालय अब विभिन्न जनजातियों के परंपरागत व्यंजनों से भी महकेगा। दरअसल, मिलेट्स के स्वाद और सेहत से भरपूर जनजातीय भोजन का ट्रायल संग्रहालय की कैंटीन के माध्यम से 21 से 31 दिसंबर तक चला। 11 दिवसीय देशज व्यंजन मेला में प्रयोगित रूप से मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी और कोदो सहित विभिन्न प्रकार के श्रीअन्न(मिलेट्स)से तैयार व्यंजन शहरवासियों को परोसे गए। लोगों ने बड़े चाव से इसे खाया। अब उनकी जुबान पर भी इस भोजन का स्वाद चढ़ चुका है। देसज व्यंजन मेले में पिछले 11 दिनों में करीब दस हजार लोगों ने ये व्यंजन चखे हैं। ट्रायल रन की शानदार सफलता के बाद अब इस भोजन को दस जनवरी से केंटीन के मेन्यू में नियमित किया जा रहा है।

ये खास व्यंजन होंगे शामिल

देशज व्यंजन मेले में ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी की रोटी के साथ विभिन्न प्रकार की अर्गेनिक भाजी एवं सब्जियां परोसी गईं। इसके साथ ही महुआ गुलगुला, महुआ जलेबी, कुटकी खीर, मक्का लड्डू, च्वार लड्डू, बाजरा लड्डू , कोदो लड्डू, कढ़ी, दाल पानिया, महुआ पुआ जैसे पकवानों को स्वाद प्रेमियों ने बहुत पंसद किया। इन पारंपरकि व्यंजनों के अलावा कोदो से बने डोसा और इडली, उड़द वड़े तथा कोदो पुलाव व लड्डू भी लोगों की पसंद में सबसे ऊपर हैं। ये सभी व्यंजन स्वाद के साथ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। 

जनवरी के दूसरे सप्ताह से रोज मिलेगा स्वाद

देशज व्यंजन मेला में मिलेट्स फूड का स्वाद रास आने के बाद जनवरी के दूसरे सप्ताह से इस मेन्यू को नियमित कर दिया जाएगा। जनजातीय संग्रहालय के क्यूरेटर अशोक मिश्रा बताते हैं कि जनजातीय जीवन और संस्कृति को जानने लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। वे कला के विविध माध्यम से जनजातीय जीवनशैली को समझते हैं। श्रीअन्न की सीधा संबंध भी जनजातीय समुदाय से है। सैलानी अब श्रीअन्न से तैयार व्यंजनों का आनंद लेकर जनजातीय भोजन की भी अनुभूति कर सकेंगे। संग्रहालय में इसके पहले भी जनजातीय भोजन परोसा जाता रहा है, लेकिन यह सिर्फ चुनिंदा दिनों पर ही उपलब्ध होता था। पहली बार इसे नियमित फूड मेन्यू में शामिल किया जा रहा है।

पत्तों व मिट्टी के बर्तन में परोसे जाएंगे व्यंजन

जनजातीय जायका देते ये व्यंजन पारंपरिक तरीके से चूल्हे पर ही पकाए जाते हैं। कैंटीन संचालक कमलेश बारिया ने बताया कि विभिन्न जनजातीय व्यंजनों को उसी जनजाति के लोग अपने तरीके से तैयार करते हैं। साथ ही आंगतुकों को पत्ते और मिट्टी से बने बर्तन पर व्यंजनों को परोसा गया, जिससे लोग भोजन के स्वाद के साथ ही वहां की संस्कृति से जुड़ सकें। यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी।