दूसरों के सुख-दुख का भागी बनने से हमारी व्यक्तिगत चेतना विकसित होकर विश्व चेतना बन जाती है। समय के साथ जब ज्ञान की वृद्धि होती है, तब उदासीनता संभव नहीं। तुम्हारा आंतरिक स्रोत ही आनन्द है।अपने दु:ख को दूर करने का उपाय है विश्व के दुख में भागीदार होना और अपनी खुशी को बढ़ाने का उपाय है विश्व के आनन्द में सहभागी होना। जब सभी लोग इस विचार से आएंगे कि वे समाज को अपना क्या योगदान दें, तो वह दैवी समाज होगा।हम सबको अपनी व्यक्तिगत चेतना को शिक्षित और शिष्ट करना है ताकि समय के साथ ज्ञान की वृद्धि हो, परिवर्तन आए। यदि ध्यान में तुम्हें गहन अनुभव न हो रहे हों तो और सेवा करो- ध्यान में अधिक गहराई आएगी।ध्यान तुम्हारी मुस्कान वापस लाता है। कई व्यक्ति सेवा करना छोड़ देते हैं जब वे अपनी छवि, प्रतिष्ठा, सम्मान, सुविधा और आराम को लक्ष्य की प्राप्ति से अधिक महत्व देने लगते हैं। कई बार लोग सेवा से कतराने लगते हैं, जब उन्हें कोई पद नहीं मिलता या जब वे अपमानित महसूस करते हैं। जब उन्हें अपेक्षानुसार कम मिलता है या जब वे लक्ष्य की प्राप्ति को चुनौती न समझकर संघर्ष समझते हैं। इसीलिए, संसार में कुछ ही लोग लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब होते हैं।
जब ऐसा कुछ करना है जो तुम नहीं कर सकते, तब विश्राम नहीं कर सकते और तब भी विश्राम नहीं कर सकते जब लगता है कि तुम्हें वह बनना है जो तुम नहीं हो। ऐसा कुछ नहीं करना जो तुम नहीं कर सकते। तुमसे वह देने के लिए नहीं कहा जाएगा जो तुम नहीं दे सकते। जितना तुम कर सकते हो, केवल वही तुम्हारे हिस्से की सेवा है।यह समझ गहरा विश्राम देती है। यदि तुममें आकांक्षा या आलस्य है, तुम विश्राम नहीं कर सकते।दोनों ही गहरे विश्राम के विरुद्ध हैं। एक आलसी व्यक्ति रात भर करवटें बदलेगा, बेचैन रहेगा और एक आकांक्षी व्यक्ति अंदर ही अंदर जलेगा।गहन विश्राम तुम्हारी कलाओं और योग्यताओं को उभारता है और तुम्हें अपने स्वरूप के समीप लाता है।थोड़ा सा भी यह आभास कि ईश्वर तुम्हारे साथै है, गहरा विश्राम लाता है।प्रार्थना, प्रेम तथा ध्यान गहन विश्राम के विशिष्ट रस हैं।
व्यक्तिगत चेतना का विस्तार
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