राज्यपाल का आदिवासी और महिला होने का पड़ेगा असर
नई दिल्ली । मणिपुर में कुकी नगा समुदाय और मेतई समुदाय के बीच में पिछले 45 दिनों से हिंसा हो रही है। स्थिति पूरी तरह से बेकाबू हो चुकी है।मेतई समुदाय का विश्वास भी वर्तमान मुख्यमंत्री और भाजपा संगठन से उठ चुका है।विधायक और मंत्रियों के प्रति भी कोई विश्वास नहीं है।मेतई समुदाय की रक्षा करने में भी शासन प्रशासन विफल रहा है।आदिवासी नागा और कुकी समुदाय के लोग पहले से ही सरकार से नाराज हैं।बीते दिनों केंद्रीय मंत्री अमित शाह आए थे।उनके दौरे के बाद भी लोगों में विश्वास कायम नहीं हो पा रहा है।वर्तमान राज्य सरकार आग में घी डालने का काम कर रही है।मुख्यमंत्री वीरेन सिंह के बयानों ने भी आग लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.
मणिपुर में आम धारणा बनने लगी है, कि राज्यपाल अनुसुइया उइके स्वयं आदिवासी महिला राज्यपाल है।वह सभी वर्गों को साथ लेकर चलती हैं।राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र में उनकी छवि बेहतर है।केंद्र सरकार राज्य सरकार को बर्खास्त करके यदि राष्ट्रपति शासन लागू कर देती है।तो राज्यपाल अनसूईया उईके दोनों समुदायों के बीच विश्वास पैदा करके समन्वय बनाने का काम बेहतर तरीके से कर सकती हैं।मणिपुर में आरक्षण को लेकर दोनों पक्षों में जो विवाद हुआ है।संघ और भाजपा नेताओं द्वारा वहां पर जो वातावरण बनाया गया है।उसके बाद वहां के निवासियों मे केंद्र और राज्य सरकार पर विश्वास नहीं रहा।बड़े पैमाने पर सैन्य बल तैनात किए जाने के बाद भी मणिपुर की स्थिति काबू नहीं हो पा रही है.
मणिपुर में केंद्र सरकार शासन एवं प्रशासन में आमूलचूल परिवर्तन करती है।वहां पर निष्पक्ष प्रशासन की तैनाती होगी, तो हिंसा को रोका जा सकता है।इसमें वर्तमान राज्यपाल की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण हो सकती है।यह चर्चा मणिपुर में सभी वर्गों में होने लगी है।केंद्र सरकार को इस मामले में त्वरित निर्णय लेना होगा।मणिपुर की समस्या को बातचीत के द्वारा ही सुलझाया जा सकता है।उसके लिए आम जनता में विश्वास पैदा करना जरूरी है।चर्चाओं में यह दायित्व राज्यपाल अनुसुइया उइके बेहतर तरीके से कर सकती हैं।बशर्ते उन्हें फ्री हैंड दिया जाए।