जबलपुर। बिजली की दरें बढ़ने के बाद उद्योगों पर संकट के बादल घिर आये हैं। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में उद्योगों को मिलने वाली बिजली की दरें बहुत ज्यादा और इसकी दरें भी अलग-अलग हैं। वहीं इस समस्या को लेकर बिजली कंपनियों के अधिकारी भी अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं है। इनका यही रवैया रहा, तो अगले १० सालों में इंडस्ट्रीज खंडहर बन जाएगी। लोग केवल इन्हें केवल देखने आएंगे। बिजली मंहगी दरों से परेशान उद्योग संगठनों ने विद्युत नियामक आयोग के समक्ष चल रही जनसुनवाई के दौरान बिजली दरों को लेकर यह आपत्ति दर्ज कराई है। १० औद्योगिक संगठनों ने जताई आपत्ति मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने बिजली की ट्रू.अप पिटिशन वित्तीय वर्ष २०१८-१९ को राजस्व में अंतर को लेकर दायर की थी। जनसुनवाई के दौरान १० औद्योगिक संगठनों और अन्य लोगों ने अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं।
घाटे की भरपाई बिजली की दरें बढ़ाकर की जा रहीं...............
उद्योग संगठनों का कहना है कि, कंपनियों ने ट्रू-अप पिटीशन में टैरिफ याचिका से ज्यादा राशि मांग ली है, जो उचित नहीं है। उन्होंने कहा, बिजली कंपनियां मध्य क्षेत्र और पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनियां पारेषण व वितरण हानियों के लिए उपभोक्ताओं को जिम्मेदार मान रही हैं, जबकि इसके लिए उपभोक्ता कैसे जिम्मेदार है। संगठनों ने ९ बिंदुओं पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। सुनवाई में अन्य लोगों ने भी बिजली दरों की बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव पर विरोध दर्ज कराया। इन लोगों ने आरोप लगाया है कि अधिकारियों के कुप्रबंधन के कारण कंपनियों का घाटा बढ़ रहा है और इसकी भरपाई घरेलू और औद्योगिक उपभोक्ताओं की बिजली दरें बढ़ाकर की जा रही हैं।
यह आरोप लगाए...........
जनसुनवाई में उपभोक्ताओं की वाजिब बातों की सुनवाई भी नहीं होती है। इस वजह से आम धारणा बन जाती है कि प्रस्तावित दरों को आवश्यकता से अधिक बढ़ाकर डिस्कॉम नियामक आयोग के समक्ष पेश करता है, जो आपत्तियों के बाद थोड़ा कम की जाती है यह प्रतिवर्ष की परिपाटी बन गई है। जिससे किसी का भला नहीं होता है। शंकास्पद ऋण वर्ष २०१८ में ३२६ करोड़ रुपए की राशि को शंकास्पद ऋण रखा गया है, जिसे अभी ३,२१२ करोड़ रुपए बताया जा रहा है, जो कि लगभग १० प्रतिशत अधिक है। इस बारे में उपभोक्ताओं या आयोग के समक्ष कोई कारण या तथ्य नहीं रखे गए हैं।
महंगी बिजली के कारण उद्योगों पर घिरे संकट के बादल
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