इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश के सभी विद्यालयों में राष्ट्रगान गाना अनिवार्य करने वाले सरकारी आदेश को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज कहा कि राष्ट्रगान गाना इस देश के प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक दायित्व है।  

मुख्य न्यायाधीश डी.बी. भोसले और न्यायमूॢत यशवंत वर्मा की पीठ ने आलौल मुस्तफा द्वारा दायर इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका पूरी तरह से गलत धारणा के साथ पेश की गई है। याचिकाकर्ता ने स्वयं को मऊ जिले में एक मदरसा चलाने वाले संस्थान का सचिव होने का दावा करते हुए 3 अगस्त, 2017 को जारी सरकारी आदेश और 6 सितंबर, 2017 को जारी एक सर्कुलर को चुनौती दी थी और उत्तर प्रदेश में स्थित मदरसों के विद्याॢथयों को राष्ट्रगान गाने के लिए बाध्य नहीं किए जाने के संबंध में अदालत से निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था।

अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ता किसी ऐसे तथ्य का संदर्भ देने या उसकी ओर हमारा ध्यान आर्किषत करने में असमर्थ रहा जिससे कि कहीं दूर तक भी यह साबित होता हो कि राष्ट्रगान गाने से उत्तर प्रदेश में मदरसों में तालीम लेने वाले विद्याॢथयों की आस्था और रीति रिवाज प्रभावित होता है।’ अदालत ने कहा, ‘इस याचिका में कोई ऐसे साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किए गए हैं जिनसे यह साबित होता हो कि उत्तर प्रदेश के मदरसों में जाने वाले विद्याॢथयों को राष्ट्रगान गाने पर आपत्ति है।’

अदालत ने कहा, ‘संविधान का अनुच्छेद 51-ए भारत के प्रत्येक नागरिक पर संविधान को मानने और राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान का सम्मान करने का दायित्व डालता है। राष्ट्रगान सभी लोगों में भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करता है। इसलिए राष्ट्रगान गाना न केवल एक संवैधानिक दायित्व है, बल्कि यह लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय अखंडता की भावना का प्रसार करता है।’