भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पाश्र्व, परिवर्तिनी अथवा वामन एकादशी के नाम से प्रसिद्घ है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के श्रवण के पश्चात करवट बदलते हैं क्योंकि निद्रामगन भगवान के करवट परिवर्तन के कारण ही अनेक शास्त्रों में इस एकादशी को परिवर्तिनी एवं पाश्र्व एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से चार्तमास व्रत का पालन करने वाले वैष्णव भक्तों के तीसरे मास का व्रत शुरु होता है तथा भक्तों का दो मास के व्रत का संकल्प भी पूर्ण होता है।
कैसे करें किस का पूजन?
इस व्रत को करने के लिए पहले दिन हाथ में जल का पात्र भरकर व्रत का सच्चे मन से संकल्प करना होता है तथा प्रात: सूर्य निकलने से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करने का विधान है। धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प मिष्ठान एवं फलों से विष्णु भगवान का पूजन करने के पश्चात अपना अधिक समय हरिनाम संकीर्तन एवं प्रभु भक्ति में बिताना चाहिए।
कमलनयन भगवान का कमल पुष्पों से पूजन करें, एक समय फलाहार करें और रात्रि को भगवान का जागरण करें। मंदिर में जाकर दीपदान करने से भगवान अति प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों पर अत्याधिक कृपा करते हैं। एकादशी व्रत शनिवार को होने के कारण पीपल और तुलसी पर जल चढ़ाए तथा महाद्वादशी के दिन सूर्य देवता को प्रसन्न करने और उन की कृपा पाने के लिए सूर्य देव को भी जल से अर्घ्य अवश्य दें।
क्या करें दान?
वैसे तो भगवान अपने भक्तों के वशीभूत रहते हैं तथा भक्त की पुकार पर दौड़े चले आते हैं परंतु व्रत आदि में दान की महिमा सदा ही होती है। इस दिन भगवान विष्णु जी का स्मरण करते हुए तांबा, चांदी, चावल और दहीं का दान करना उत्तम माना गया है परंतु भक्त सच्चे भाव से अपनी सामर्थ्यानुसार किसी भी प्रिय वस्तु का दान करके प्रभु की असीम कृपा का पात्र बन सकते हैं।