नई दिल्ली : लोकसभा की तीन और नौ राज्यों की 33 विधानसभा सीटों पर आगामी 13 सितंबर को होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार आज थम गया। इसे मई में सत्ता में आने के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार की लोकप्रियता की एक और बड़ी परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है।
जिन तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं उसमें वड़ोदरा (गुजरात), मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) और मेडक (तेलंगाना) शामिल हैं। वहीं, जिन 33 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं उसमें उत्तर प्रदेश की 11, गुजरात की नौ, राजस्थान की चार, पश्चिम बंगाल की दो, पूर्वोत्तर की पांच और छत्तीसगढ़ व आंध्र प्रदेश की एक-एक विधानसभा सीट शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश में भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी का काफी कुछ दांव पर है क्योंकि गत मई में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लोकसभा की 80 में से 73 सीटें जीत ली थीं। तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल की दो विधासभा सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रही है। वहां सारदा चिटफंट घोटाले की आंच तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं तक पहुंचने के बीच ये उपचुनाव हो रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में जहां मैनपुरी लोकसभा सीट पर कब्जा बरकरार रखना समाजवादी पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है, वहीं राज्य की 11 विधानसभा सीटों पर अपना वर्चस्व कायम रखना भाजपा के लिए भी बड़ी चुनौती है। मैनपुरी लोकसभा सीट मुलायम सिंह यादव के इस्तीफा देने से खाली हुई है। यादव ने आजमगढ़ सीट से भी चुनाव में जीत हासिल की थी।
सपा ने मैनपुरी सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए अपना सबकुछ झोंक दिया है क्योंकि वहां से मुलायम के बड़े भाई के पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव मैदान में हैं। सपा के लिए इस सीट पर जीत हासिल करना ही सिर्फ चुनौती नहीं है बल्कि उसे जीत के उस अंतर को भी बरकरार रखना है जिससे मुलायम जीते थे।
मैनपुरी में बसपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। इससे तेज प्रताप सिंह और भाजपा के शिव सिंह शाक्य के बीच वहां सीधा मुकाबला है। लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने वाली बसपा उपचुनाव नहीं लड़ रही है। कांग्रेस और सपा ने सभी 11 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और भाजपा 10 सीटों पर जबकि उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल एक सीट पर चुनाव लड़ रही है।
उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजे इस बात का संकेत देंगे कि साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले किस ओर राजनैतिक हवा बह रही है। जिन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं उसमें सहारनपुर नगर, नोएडा, ठाकुरदुआरा, बिजनौर, निघासन, बल्हा, सिराथू, रोहनिया, हमीरपुर, चरखारी और लखनउ पूर्व शामिल हैं। इन सभी सीटों को भाजपा विधायकों ने खाली किया है, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी।
गुजरात में नरेंद्र मोदी की उत्तराधिकारी बनीं आनंदी बेन पटेल के लिए वड़ोदरा लोकसभा सीट और राज्य की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव पहली बड़ी परीक्षा है। 12 वर्षों से अधिक समय में गुजरात में यह पहला चुनाव होगा जब भाजपा अपने स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिना यह चुनाव लड़ेगी। मेडक लोकसभा सीट पर टीआरएस, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। उपचुनाव की जरूरत टीआरएस प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के इस्तीफे की वजह से पड़ी है।
दूसरी तरफ तेदेपा यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि उसके गढ़ नंदीगाम विधानसभा सीट को फतह करना इतना आसान नहीं होगा। इस सीट पर उसके विधायक तंगिराला प्रभाकर राव की मृत्यु की वजह से उपचुनाव की जरूरत पड़ी है। पश्चिम बंगाल में चौरंगी और दक्षिण बशीरहाट विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की लोकप्रियता के लिए महत्वपूर्ण परीक्षा है। पहले एक सीट पर माकपा और एक पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा था।
राजस्थान में भरतपुर में वीर, अजमेर में नसीराबाद, झूंझूनु में सूरजगढ़ और कोटा दक्षिण विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं। असम में लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन करने के बाद कांग्रेस एकबार फिर भाजपा और इत्र कारोबारी बदरूद्दीन अजमल की ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट से चुनौती का सामना कर रही है। वहां लखीपुर, सिलचर और जमुनामुख विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं।
तीन लोस और 33 विस सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार थमा
← पिछली खबर
आपके विचार
पाठको की राय