इंदौर:चतुर्विद संघ के सान्निध्य में रविवार को गोम्मटगिरि पर भगवान बाहुबली के साथ 24 तीर्थंकरों का महामस्तकाभिषेक किया गया। यह योग 10 साल बाद बना। रत्नजड़ित स्वर्ण कलशों से जैसे ही पवित्र जलधारा 31 फीट ऊंचे बाहुबली के मस्तक पर गिरी, पूरा परिसर जयघोष से गूंज उठा।
आयोजन भगवान बाहुबली दिगंबर जैन ट्रस्ट गोम्मटगिरि ने वार्षिकोत्सव के तहत किया था। आचार्य शिवसागर, मुनि प्रणामसागर, आर्यिका सुज्ञानश्री माता, क्षुल्लिका चंद्रमति माता, क्षुल्लिका सत्यश्री माता सहित समाजसेवी विजय कुमार, महामंत्री भरत मोदी, ट्रस्टी भरत पाटनी, प्रतिपाल टोंग्या, डीके जैन, प्रदीप बड़जात्या, सुमन जैन, सुरेंद्र जैन बाकलीवाल, राजेंद्र गंगवाल आदि विशेष रूप से उपस्थित थे। भक्तों ने बाहुबली की मूर्ति के पीछे संगमरमर लगाने के लिए 24 लाख रुपए और बाउंड्रीवाल बनाने के लिए भी राशि भेंट की।
अष्टा-किा के दौरान महामस्तकाभिषेक होने से आयोजन का महत्व भी बढ़ गया। जैन संप्रदाय के अनुसार यह वह समय होता है, जब सभी देवता नंदीश्वर द्वीप में भगवान का अभिषेक करते हैं। यहां मनुष्य नहीं जा सकता, इसलिए वह धरती पर बाहुबली का अभिषेक करता है। अष्टा-किा पर्व फाल्गुन, आषाढ़ और कार्तिक के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है।
क्षीरसागर के जल से होता है अभिषेक
मुनि प्रणामसागर के अनुसार देवताओं द्वारा यह अभिषेक क्षीरसागर के जल से किया जाता है। मानव के लिए यह संभव नहीं इसलिए कुएं का पानी उपयोग में लाया जाता है। इस जल को कपड़े से छाना जाता है। फिर उसमें लौंग डालकर गुनगुना किया जाता है। ठंडा होने पर 24 घंटे के भीतर अभिषेक किया जाता है। लौंग इसलिए डालते हैं ताकि उस पानी में जीव उत्पन्न न हों।
रत्नजड़ित स्वर्ण कलशों से बाहुबली का महाभिषेक
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