नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुभाष चंद्र बोस की 119वीं जयंती पर उनसे जुड़ी 100 गोपनीय फाइलों की डिजिटल प्रतियां सार्वजनिक कीं. इन फाइलों से नेताजी की मृत्यु से जुड़े विवाद को समझने में मदद मिलेगी. नेताजी से जुड़ी जो फाइलें आज सार्वजनिक की गयी हैं, उसके अनुसार लंदन में रह रहे रिटायर्ड आइएएस बीआर टामटा ने वर्ष 2000 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को 1945 में नेताजी की मौत की पुष्टि से जुड़े दो दस्तावेज भेजे थे. दस्तावेजों से यह भी मालूम हुआ है कि नेताजी की मौत का पता लगाने के लिए गठित शाहनवाज खान आयोग और खोसला आयोग के मुताबिक नेताजी की मौत हो गयी थी. उनकी मौत विमान हादसे में हाेने की बात का फाइल में उल्लेख है. वहीं, जस्टिस मुखर्जी आयोग इस मामले की जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा.
प्रधानमंत्री ने फाइलों को सार्वजनिक किया और इनकी डिजिटल प्रतियां भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार में प्रदर्शित करने के लिए जारी कीं.
प्रधानमंत्री ने एक बटन दबाकर इन फाइलों की प्रतियों को सार्वजनिक किया और उस समय सुषाभ चंद्र बोस के परिवार के सदस्य, केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा और बाबुल सुप्रियो मौजूद थे. बाद में मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने सार्वजनिक की गयी इन फाइलों को देखा और वहां राष्ट्रीय अभिलेखागार में आधे घंटे तक रहे. उन्होंने बोस के परिवार के सदस्यों से भी बात की.
पिछले वर्ष अक्तूबर में प्रधानमंत्री ने नेताजी के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की थी और यह घोषणा की थी कि सरकार उनसे जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करेगी. नेताजी के करीब 70 वर्ष पहले लापता होने के बारे में अभी भी रहस्य बरकरार है. नेताजी के लापता होने से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए गठित दो आयोगों ने यह निष्कर्ष निकाला कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइपेइ में विमान दुर्घटना में हुई. जबकि न्यायमूर्ति एमके मुखर्जी के नेतृत्व में गठित तीसरे आयोग का यह निष्कर्ष नहीं था और उसका मानना था कि बोस इसके बाद भी जीवित थे.
इस विवाद को लेकर नेताजी के परिवार में भी अलग-अलग विचार सामने आये हैं. इस संबंध में चार दिसंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय ने 33 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक किया था और उसे एनएआइ को सौंपा था. इसके बाद गृह और विदेश मंत्रालय ने नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया शुरू की और इसे बाद में एनएआइ को हस्तांतरित कर दिया गया. नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने के बारे समारोह में मौजूद रहे बोस के परिवार के सदस्य एवं प्रवक्ता चंद्र कुमार बोस ने कहा कि हम प्रधानमंत्री के इस कदम का तहे दिल से स्वागत करते हैं. यह भारत में पारदर्शिता का दिन है.
इससे पहले चंद्र कुमार बोस ने भाषा से कहा, हम महसूस करते हैं कि कुछ महत्वपूर्ण फाइलों को कांग्रेस के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया ताकि सत्य को छिपाया जा सके. हमारे पास इस बात को समझने के लिए दस्तावेजी सबूत हैं. इसलिए हम महसूस करते हैं कि भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रूस, जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका में रखी गयी फाइलों को जारी किया जा सके.
उन्होंने कहा कि हमने अभी सभी फाइलों का अध्ययन नहीं किया है. लेकिन अभी तक जो कुछ हमने देखा है, उससे विमान दुर्घटना के बारे में परिस्थितिजन्य साक्ष्य है लेकिन निष्कर्ष निकालने लायक साक्ष्य नहीं है. चंद्र कुमार बोस ने कहा कि यहां तक कि एक पत्र में हमने देखा, जो लाल बहादुर शास्त्री द्वारा सुरेश बोस को लिखा गया था, और उसमें विमान दुर्घटना का निष्कर्ष निकालने लायक साक्ष्य नहीं होने की बात है और केवल कुछ परिस्थितिजन्य साक्ष्य की बात है. उन्होंने कहा कि पहले की तुलना में इस सरकार के रुख में बदलाव आया है. सबसे पहले नेताजी के बारे में तथ्यों को दबाने के रुख को त्यागा गया. और यह नेताजी के बारे में सचाई सामने लाने में सबसे महत्वपूर्ण होगा.
समारोह में मौजूद नेताजी के भतीजे अरधेंदू बोस ने कहा कि बोस का परिवार और संपूर्ण देश पिछले सात दशकों से इस पल की प्रतीक्षा कर रहा था. हम महसूस करते हैं कि इन फाइलों से इस विषय पर कुछ प्रकाश पड़ेगा.
उधर, कांग्रेस ने नेताजी की फाइलों को सार्वजनिक किये जाने के सवाल पर कहा है कि उसे पूर्व में ऐसा काम नहीं किये जाने की कोई शर्मिंदगी नहीं है. जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि नेताजी को लीडर ऑफ नेशन घोषित किया जाये.
नेताजी की मौत से जुड़ी 100 फाइलें सार्वजनिक, क्या 1945 में ही हो गयी थी नेताजी की मौत?
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