नई दिल्ली : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने दावा किया है कि दस जनपथ के ‘स्वयंभू’ वफादारों ने सोनिया गांधी को इस बात के लिए सहमत किया था कि 1991 में पवार के बजाए पी. वी. नरसिंहराव को प्रधानमंत्री बनाया जाए क्योंकि ‘गांधी परिवार किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहता था जो स्वतंत्र विचार रखता हो।’ राकांपा अध्यक्ष ने कहा कि वफादारों में शामिल दिवंगत अर्जुन सिंह खुद भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे और उन्होंने पवार के बजाए राव को चुनने का निर्णय लेने में सोनिया गांधी को राजी करने की ‘‘चालाकीपूर्ण चाल चली’’। राव की कैबिनेट में पवार रक्षा मंत्री बने।
पवार ने ये दावे अपनी किताब ‘लाइफ ऑन माई टर्म्स- फ्रॉम ग्रासरूट्स एंड कोरीडोर्स ऑफ पावर’ में किए हैं। इसे सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति की उपस्थिति में शरद पवार के 75वें जन्मदिन समारोह में औपचारिक रूप से जारी किया गया। पवार का जन्मदिन कल है।
उन्होंने कहा कि शीर्ष पद के लिए उनके नाम पर विचार न केवल महाराष्ट्र में बल्कि दूसरे राज्यों में भी पार्टी के अंदर चल रहा था। वह काफी सावधान थे क्योंकि वह जानते थे कि काफी कुछ दस जनपथ पर निर्भर करता है जहां सोनिया गांधी रहती हैं।
पवार ने अपनी किताब में कहा है, ‘पी. वी. नरसिंह राव भले ही वरिष्ठ नेता थे लेकिन चुनाव से पहले स्वास्थ्य कारणों से वह मुख्य धारा की राजनीति से अलग थे। उनके लंबे अनुभव को देखते हुए उन्हें वापस लाने के सुझाव दिए गए।’ पवार ने कहा, ‘‘दस जनपथ के स्वयंभू वफादार निजी बातचीत में कहते थे कि शरद पवार को प्रधानमंत्री बनाए जाने से उनकी युवा उम्र को देखते हुए प्रथम परिवार के हितों को नुकसान पहुंचेगा।’’
पवार ने अपनी किताब में लिखा है, ‘वे कहते थे कि वह लंबी रेस का घोड़ा होगा। जिन लोगों ने यह चालाकीपूर्ण चाल चली उनमें एम. एल. फोतेदार, आर. के. धवन, अर्जुन सिंह और वी. जॉर्ज थे।’ उन्होंने कहा, ‘उन्होंने सोनिया गांधी को विश्वास दिलाया कि नरसिंहराव का समर्थन करना सुरक्षित रहेगा क्योंकि वह बूढ़े हैं और उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। अजरुन सिंह खुद ही प्रधानमंत्री बनना चाहते थे और उन्हें उम्मीद थी कि वह जल्द ही राव का स्थान ले लेंगे। सोनिया गांधी ने 1991 में जैसे ही इस मण्डली के ‘राव लाओ’ पर अमल किया, वैसे ही चीजें मेरे खिलाफ हो गईं।’ अंतत: पवार के बजाए राव को चुना गया जिन्हें 35 से ज्यादा वोटों की बढ़त मिली थी। बाद में इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव और परिवार के विश्वस्त पी. सी. एलेक्जेंडर ने उनके और राव के बीच बैठक कराई और उन्हें शीर्ष तीन विभागों की पेशकश की।
पवार ने कहा, ‘वह (अलेक्जेंडर) और मैं जानते थे कि मैं कड़ा प्रतिद्वंद्वी हूं लेकिन गांधी परिवार किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर नहीं बिठाना चाहता था जो स्वतंत्रत ख्यालों वाला हो।’ एक अन्य अध्याय में मराठा नेता ने लिखा है कि 1997 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से पहले उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती से कहा कि अगर वह सरकार के खिलाफ वोट करें तो यह उनकी पार्टी के हित में होगा। उस वक्त वह लोकसभा में कांग्रेस के नेता थे।
वाजपेयी सरकार द्वारा अन्नाद्रमुक प्रमुख जे. जयललिता की मांग को अस्वीकार करने के बाद उनकी पार्टी के 18 सांसदों ने समर्थन वापस ले लिया था। पवार ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव पर ध्वनि मत लिया गया और अध्यक्ष ने इसे पारित भी घोषित कर दिया लेकिन विपक्ष ने मत विभाजन की मांग उठा दी।
स्वतंत्र विचार वाले व्यक्ति को PM नहीं बनाना चाहती थीं सोनिया: पवार
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