मैनपुरी : शहादत के अट्ठारह साल बाद रणबांकुरे का शव गांव पहुंचा तो आंखें नम हो गईं। बर्फ में 18 साल तक मौत की नींद में सोए जांबाज सिपाही गया प्रसाद आखिर अपने गांव की मिंट्टी को आखिरी बार छूने के लिए पहुंच गए। सैन्य वाहन से जैसे ही शव उतरा माहौल भावपूर्ण हो गया। अमर शहीद के लिए नारे लगने लगे। हर कोई शहीद की एक झलक पा लेना चाहता था। देर रात तक ग्रामीणों का सैलाब उमड़ता रहा। शहीद का अंतिम संस्कार गुरुवार को किया जाएगा।

18 साल पूर्व सियाचिन में गयाप्रसाद स्नो स्कूटर फिसलने से पहाड़ की दरार में गिरकर बर्फ में दब गए थे। सेना ने उनकी काफी तलाश की लेकिन शव नहीं मिला था। चार दिन पूर्व ग्लेशियर से गया प्रसाद का शव सुरक्षित मिलने की खबर आई थी। बुधवार रात करीब 11.10 बजे आगरा स्थित सेना के हेडक्वार्टर से कैप्टन रमन कुमार, लेफ्टिनेंट संदीप त्यागी समेत 30 जवानों की टुकड़ी सेना की गाड़ी से शव लेकर गुबरिया गांव पहुंची। शहीद गया प्रसाद के आखिरी दर्शन के लिए शाम से ही आसपास के गांवों के लोग जमे हुए थे।

ताबूत में बंद शव गाड़ी से उतारा गया तो परिजन दौड़ पड़े। गया प्रसाद के वृद्ध पिता गजाधर अपने लाड़ले को देखने दौड़े। शहीद की पत्नी रामादेवी गश खाकर गिर गईं। ग्रामीण और नाते रिश्तेदारों ने किसी तरह उन्हें ढांढ़स बंधाया। शहीद सैनिक गया प्रसाद की बेटियां मीना और मंजू भी पिता का शव आने की सूचना पर गांव आ गई थीं।