17 मई को ज्येष्ठ मास की प्रतिपदा और द्वितीया तिथि एक ही दिन है। इस महीने की द्वितीया तिथि पर नारद मुनि की जयंती मनाई जाती है। नारद मुनि को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना गया है। नारद जी भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। नारद मुनि से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं, जिनसे जीवन को सुखी बनाने की सीख मिल सकती है।नारद जी और रत्नाकर डाकू से जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग, जिसका संदेश ये है कि हमें अगर कोई व्यक्ति सही सलाह दे तो उसे तुरंत मान लेना चाहिए।
पुराने समय में रत्नाकर नाम का डाकू था। वह लोगों को लूट कर परिवार का पालन कर रहा था। रत्नाकर लूट में मिला सारा धन घर के लोगों पर खर्च कर देता था। परिवार के सभी लोग बहुत सुखी थे। एक दिन रत्नाकर की मुलाकात नारद मुनि से हो गई। नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा कि तुम ये लूटमार करते हो, जब इसका दंड मिलेगा तो क्या तुम्हारे घर के लोग भी उस दंड में हिस्सेदार रहेंगे या नहीं? रत्नाकर को अपने परिवार पर भरोसा था, उसने कहा कि मेरे घर के लोग भी मेरे दंड में भागीदार रहेंगे। मैं मेरे घर के लिए ही लूटमार करता हूं। नारद जी ने कहा कि तुम्हें एक बार अपने घर के लोगों से ये बात पूछ लेनी चाहिए। रत्नाकर नारद मुनि की बात मानकर अपने घर पहुंचा और सभी से पूछा कि क्या आप लोग मेरे दंड में मेरे साथ भागीदार बनेंगे?
घर के किसी भी व्यक्ति ने रत्नाकर डाकू का साथ नहीं दिया। सभी ने कहा कि परिवार का पालन करना तुम्हारी जिम्मेदारी है, तुम हमारा ध्यान भी रखते हो, लेकिन हम तुम्हारे दंड में भागीदार नहीं बनेंगे। परिवार के लोगों की ये बातें सुनकर रत्नाकर को समझ आ गया कि किसी के लिए भी गलत काम नहीं करना चाहिए। गलत काम का बुरा फल ही मिलता है। इसके बाद रत्नाकर ने गलत करना छोड़ दिए। इस कथा से हमें संदेश मिलता है कि अगर कोई विद्वान व्यक्ति हमें कोई अच्छी सलाह देता है तो उसे मान लेना चाहिए। विद्वान लोगों की सलाह मानने से हमारी कई समस्याएं खत्म हो जाती हैं।