लोकसभा में अपनी पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिए जाने की कांग्रेस की मांग को स्पीकर सुमित्रा महाजन ने नामंजूर कर दिया.

सुमित्रा ने कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिए जाने के अपने निर्णय के बारे में कहा, ‘‘मैंने नियमों और परंपराओं का अध्ययन किया है.’’

स्पीकर के इस निर्णय के बारे में कांग्रेस को पत्र लिख कर बता दिया गया है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सुमित्रा को पत्र लिख कर लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने का आग्रह किया था.

यह निर्णय करने से पहले स्पीकर ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के विचार भी लिए जिन्होंने कहा कि कांग्रेस के पास सदन में वह आवश्यक संख्या नहीं है जिससे उसे नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिया जा सके.

लोकसभा में कांग्रेस 44 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. 282 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है.

स्पीकर ने नियमों का हवाला देते हुए कांग्रेस से कहा है कि वह इस स्थिति में नहीं हैं कि सदन में पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दे सकें. यह दर्जा पाने के लिए 543 सदस्यीय लोकसभा में किसी दल के पास इस संख्या का कम से कम से 10 प्रतिशत यानी 55 सीट होना आवश्यक है.

समझा जाता है कि अपने इस निर्णय के संदर्भ में सुमित्रा ने 1980 और 1984 के उदाहरणों का भी हवाला दिया जब लोकसभा में किसी विपक्षी दल के पास यह संख्या नहीं होने के कारण किसी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया गया था.

खड़गे ने इस निर्णय पर कहा कि वह इस बारे में कुछ कहने से पहले कांग्रेस आलाकमान और पार्टी के विधि प्रकोष्ठ की राय लेंगे.

उन्होंने कहा, ‘‘मान्यता प्राप्त नेता प्रतिपक्ष होना एक बात है और फ्लोर लीडर के रूप में काम करना दूसरी बात.’’

केन्द्रीय सूचना आयोग और केन्द्रीय सतर्कता आयोग जैसी सांविधिक निकायों की नियुक्तियों में कानूनी जरूरतों को देखते हुए नेता प्रतिपक्ष के दज्रे की अहमियत बढ़ गई है.