माना जाता है कि संसार में हम जो भी काम करते अथवा बोलते हैं वह एक उर्जा के रूप में प्रकृति में वर्तमान रहती है। उर्जा के विषय में विज्ञान कहता है कि उर्जा कभी नष्ट नहीं होती है। इसका स्वरूप बदलता रहता है। हमारी आत्मा भी उर्जा का ही स्रोत है इसलिए कभी मनुष्य शरीर में रहती है तो कभी पशु, कीट की योनी में जाकर रहती है।
लेकिन अपनी आत्मा को हम किस रूप में स्थान देना चाहते हैं यह हमारे अपने हाथ में है। जिस प्रकार उर्जा को कर्म के अनुसार रूपांतरित किया जा सकता है ठीक उसी प्रकार कर्म के अनुसार आत्मा को भी रूप दिया जा सकता है। पुराणों में बताया गया है कि आत्मा का वही रूप होता है जैसे शरीर में वह विराजमान होता है। वर्तमान जन्म में हम जो अच्छे या बुरे कर्म करते हैं उसके अनुरूप आत्मा दूसरा शरीर ग्रहण करती है।
आत्मा अपने साथ पूर्व जन्म की स्मृति और आकांक्षाओं को भी साथ में लेकर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। शरीर बदलने के बाद भी आत्मा पुराने शरीर की स्मृतियों को नहीं भूलती है। इस तथ्य को परामनोवैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं। मरने के समय जिनकी आत्मा अतृत्प रहती है और पूर्व जन्म कार्यों को पूरा करने के लिए छटपटाती रहती है। ऐसे लोगों को अपने पूर्व जन्म की कई बातों की स्मृति रहती है।
पुराणों में पार्वती के पूर्व जन्म की कथाओं का उल्लेख मिलता है। कथाओं में बताया गया है कि पार्वती को पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्र के रूप में जन्म लेकर शिव से विवाह और अग्नि कुण्ड में भष्म होने की घटना का स्मरण था। शिव को फिर से पति रूप में पाने के लिए ही सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया और कठोर तपस्या किया। पुराणों और शास्त्रों में कई ऐसी कथाओं का जिप्र किया गया है जिसमें व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म की घटनाओं की स्मृति रही। जिमूतवाहन व्रत में भी इसी तरह की एक कथा का उल्लेख मिलता है।
इसलिए रह जाती है पूर्व जन्म की स्मृतियां
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